रहस्यमय ढंग से वर्ष 2000 में पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव ने अपनी खिसकने की दिशा बदल दी है। अब वह पूर्व दिशा में ग्रीनविच मेेरिडियन की ओर खिसकने लगा है। और अनुमान है कि उत्तरी ध्रुव के खिसकने की दिशा में यह परिवर्तन धरती पर पानी के वितरण में बदलाव और ध्रुवीय बर्फ के पिघलने के कारण हुआ है।
पृथ्वी की घूर्णन अक्ष यानी जिस काल्पनिक धुरी पर पृथ्वी लट्टू की तरह घूमती है, वह अपनी दिशा बदलती रहती है। इसी अक्ष से उत्तरी ध्रुव की भौगोलिक स्थिति भी निर्धारित होती है। पिछली सदी में धुरी टोरोंटो और पनामा शहर को जोड़ने वाली देशांतर रेखा पर कनाडा की हडसन खाड़ी की ओर बढ़ रही थी। इस गति का कारण यह था कि पिछले हिम युग के बाद पृथ्वी की पर्पटी में द्रव्यमान का पुनर्वितरण हुआ था।
मगर वर्ष 2000 में नाटकीय ढंग से इस दिशा में 75 डिग्री का अंतर आया और अब पृथ्वी की अक्ष ग्रीनविच मेरिडियन के समांतर बदल रही है। ऐसे कुछ प्रमाण मिले हैं जिनसे लगता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फीली चादर के सिकुड़ने की वजह से ऐसा हुआ है।
अब एक अध्ययन से पता चला है कि धरती पर पानी का पुनर्वितरण भी इसका एक कारण है। इस अध्ययन के मुखिया नासा की जेट प्रपल्शन प्रयोगशाला के सुरेंद्र अधिकारी ने बताया है कि यह पहली बार है कि हम यह देख रहे हैं कि विश्व स्तर पर सतही पानी के पुनर्वितरण की वजह से पृथ्वी के घूर्णन पर असर पड़ता है। उनके अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप और केस्पियन सागर तेज़ी से भारी मात्रा में पानी गंवा रहे हैं। मसलन 2003 से देखें तो ग्रीनलैंड से प्रति वर्ष 2720 खरब किलोग्राम बर्फ पानी बनकर बहा है। इसी प्रकार से पश्चिमी अंटार्कटिका से 1240 खरब तथा पूर्वी अंटार्कटिका से 740 खरब किलोग्राम बर्फ प्रति वर्ष बहकर चला जा रहा है।
इस अध्ययन के लिए जिन आंकड़ों का उपयोग किया गया, वे नासा के ग्रेस उपग्रह से प्राप्त हुए हैं। इस उपग्रह ने 2002 से 2015 के दरम्यान इस बात की खोजबीन की है कि जलराशियों के वितरण का पृथ्वी की घूर्णन अक्ष की दिशा से क्या सम्बंध है।
इससे प्राप्त परिणामों ने एक और पुरानी गुत्थी पर रोशनी डाली है। आखिर क्यों पृथ्वी की अक्ष हर कुछ वर्षों में डोलती रहती है। अधिकारी का मत है कि इसका सम्बंध पृथ्वी पर पानी के पुनर्वितरण से है।

देखा जाए, तो ध्रुव की गति की सटीक जानकारी कई दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जैसे जीपीएस व्यवस्था के काम करने और उपग्रहों को सही स्थान पर स्थापित करने के लिए यह जानकारी अनिवार्य है। इसके अलावा, इस अध्ययन के परिणामों से जलवायु परिवर्तन के अध्ययन में भी मदद मिलेगी। हमारे पास पृथ्वी की अक्ष की गति के सटीक आंकड़े 1899 से उपलब्ध हैं। इन आंकड़ों के आधार पर हम अतीत में धरती और पानी के वितरण में हुए परिवर्तनों का अनुमान लगा सकेंगे। इसके आधार पर बेहतर जलवायु मॉडल्स बनाए जा सकेंगे। (स्रोत फीचर्स)