प्रायन एक तरह के प्रोटीन होते हैं, जो गलत ढंग से तह हो जाते हैं। इनका सम्बंध कई बीमारियों से देखा गया है। अब तक ऐसे गलत ढंग से तह किए गए प्रोटीन्स सिर्फ जंतुओं में देखे गए थे मगर कैम्ब्रिज के व्हाइटहेड इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च की सूज़न लिंडक्विस्ट और उनके साथियों ने रिपोर्ट किया है कि ऐसे प्रायन प्रोटीन्स पौधों में उपस्थित हो सकते हैं।
पौधों में एक प्रोटीन होता है ल्यूमिनीडिपेंडेंस (एलडी) जो दिन की रोशनी के प्रति संवेदनशील होता है और यह पौधों में फूल आने के समय का नियमन करता है। जब एलडी प्रोटीन बनाने वाले जीन का एक हिस्सा खमीर की कोशिका में डाला गया तो इसने वहां एक प्रोटीन का निर्माण किया जो सही ढंग से तह नहीं होता। और तो और इस गलत ढंग से तह हुए प्रोटीन का आसपास के प्रोटीन्स पर भी असर होता है और वे भी गलत ढंग से तह होने लगते हैं। इस खमीर की अगली पीढ़ियों में भी प्रोटीन गलत ढंग से तह होते रहते हैं। वैसे लिंडक्विस्ट का कहना है कि उनके इस अध्ययन से पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि पौधों में प्रायन होते हैं, मगर ज़्यादा संभावना इसी बात की है कि पौधों में भी प्रायन पाए जाते हैं। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि एलडी प्रायन की तरह क्यों व्यवहार कर रहा है। लिंडक्विस्ट का मत है कि कुछ जीवों में प्रायन प्रोटीन्स विकास की दृष्टि से कुछ फायदा दे सकते हैं।

उदाहरण के लिए, फलभक्षी मक्खियों में प्रायन का संचय होने से उनमें दीर्घावधि याददाश्त को सहेजने में मदद मिलती है। प्रायन का संचय तंत्रिकाओं के जोड़ों (साइनेप्स) पर होता है, जो उन्हें पर्यावरण के कारकों को याद रखने में मदद करता है। पौधों को भी तो अपने पर्यावरण का ख्याल रखना होता है। लिंडक्विस्ट के मुताबिक प्रायन इसमें मदद कर सकते हैं। कई पौधों को फूलने से पहले लंबे समय तक अत्यंत कम तापमान की ज़रूरत होती है। संभव है कि कम तापमान की इस अवधि को याद रखने में प्रायन कुछ मदद करते हों, हालांकि अभी यह एक अटकल ही है।
लिंडक्विस्ट स्वीकार करती हैं कि वे वनस्पति वैज्ञानिक नहीं हैं, इसलिए उनके निष्कर्ष बहुत प्रारंभिक ही हैं। किंतु उनके अध्ययन से यह ज़रूरत तो अवश्य उभरती है कि पौधों में प्रायन प्रोटीन्स की खोज व्यवस्थित ढंग से की जाए। (स्रोत फीचर्स)