डॉ. अरविन्द गुप्ते


जैव विकास के दौरान कभी-कभी जंतुओं की पोषण की आदतें बदल जाती हैं। हम यदि अपना ही उदाहरण लें तो हम पाते हैं कि हमारे सुदूर पूर्वज कभी शाकाहारी थे, किंतु विकास के किसी चरण में वे शाकाहारी भोजन के साथ अन्य जंतुओं को खाने लगे और सर्वाहारी बन गए। चीन में पाया जाने वाला पांडा नामक भालू खानदानी मांसाहारी होने के बावजूद अब लगभग पूरी तरह शाकाहारी बन गया है। आहार में होने वाले इस प्रकार के परिवर्तन हज़ारों वर्षों की अवधि में होते हैं और किसी एक जीवनकाल में इन्हें देखना संभव नहीं होता। किंतु हाल में एक ऐसा उदाहरण सामने आया है जिसमें एक मांसाहारी जंतु देखते-देखते शाकाहार की तरफ मुड़ रहा है। बाल्कन्स ग्रीन लिज़र्ड (Lacerta trilineata) नामक एक छिपकली यूनान और उसके आसपास के अन्य देशों जैसे अल्बेनिया, बोसनिया और हर्ज़गोविना, बुल्गारिया, रोमानिया, सर्बिया, इस्राइल, सीरिया आदि कई देशों में पाई जाती है। यूनान के पास भूमध्य सागर में स्थित द्वीपों पर भी यह काफी संख्या में पाई जाती है। यह छिपकली घरों, बगीचों, जंगलों आदि विविध प्रकार के पर्यावरणों में रहती है और इसका प्रमुख भोजन छोटे कीट हैं, किंतु कभी-कभी यह पौधों को भी चबा लेती है।

एथेन्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कोस्टास सागोनास को ऐसा लगा कि द्वीपों पर कीटों के प्राकृतिक आवास कम होने के कारण कीटों की संख्या में कमी आई है। इसके परिणामस्वरूप छिपकलियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा है और उन्हें कीटों की तुलना में पौधों से प्राप्त भोजन पर अधिक निर्भर रहना पड़ रहा है। इसके विपरीत, मुख्य भूभाग पर रहने वाली छिपकलियों के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं आ रही थी। इस परिकल्पना को जांचने के लिए उन्होंने दोनों स्थानों की छिपकलियों में यह नापा कि उनके काटने की प्रक्रिया में जबड़े कितना बल लगा रहे थे। पौधों से प्राप्त सामग्री को चबाने के लिए शाकाहारी प्रजातियों को अधिक बल लगाना पड़ता है और उनके जबड़े अधिक मज़बूत होते हैं। जब प्रोफेसर सागोनास ने पाया कि द्वीपों पर रहने वाली छिपकलियों में काटने के दौरान मुख्य भूभाग की छिपकलियों की तुलना में औसतन 18 प्रतिशत अधिक बल लग रहा था, तो उनकी धारणा की पुष्टि हो गई। इसके बाद छिपकलियों के आमाशयों के अंदर की सामग्री की पड़ताल करने पर पाया गया कि द्वीप निवासी छिपकलियां मुख्य भूभाग निवासी रिश्तेदारों की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक वनस्पति सामग्री खा रही थीं। प्रोफेसर सागोनास ने इन अवलोकनों को साइंस ऑफ नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित किया।

किंतु वे यहीं नहीं रुके। इसके बाद उन्होंने एक और प्रयोग किया जिसमें उन्होंने दो द्वीपों और मुख्य भूभाग से बराबर संख्या में कुल 74 छिपकलियों को पकड़ा। इन्हें प्रयोगशाला में दो सप्ताह तक रखा गया ताकि वे अपने आप को नए पर्यावरण में ढाल सकें। इस अवधि में उन्हें गुबरैले की इल्लियां भोजन के रूप में दी गईं। इसके बाद चार से पांच दिन तक छिपकलियों को भूखा रखा गया और फिर हर छिपकली को एक ऐसी इल्ली खाने के लिए दी गई जिसमें प्लास्टिक का एक पहचान चिन्ह (मार्कर) रखा गया था। प्रोफेसर सागोनास के दल ने उस समय को नापा जो छिपकलियों की आहारनाल से गुज़रने के लिए प्लास्टिक के मार्कर को लग रहा था। द्वीपों पर रहने वाली छिपकलियों के लिए यह समय औसतन 23 प्रतिशत अधिक था। इससे यह संकेत मिला कि द्वीपों पर रहने वाली छिपकलियों की आहारनाल अधिक लंबी थी। शाकाहारी जंतुओं की आहारनाल मांसाहारी जंतुओं की तुलना में अधिक लंबी होती है। हर स्थान से पकड़ी गईं 7-7 छिपकलियों का विच्छेदन किया गया। द्वीपों पर रहने वाली छिपकलियों की आंत और उसके बाद के भाग की लंबाई मुख्य भूभाग की छिपकलियों की तुलना में एक-चौथाई अधिक थी।

किंतु सबसे आश्चर्यजनक था इन छिपकलियों में अंधनाल कपाट नामक विशेष कक्षों का पाया जाना। ये अंग दिखने में कुछ मनुष्य की अंधनाल (सीकम) के समान होते हैं और इनमें सहजीवी बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो वनस्पति सामग्री में स्थित सेल्यूलोज़ का विघटन करके उसे पचाने योग्य बना देते हैं। ये अंग कुछ शाकाहारी छिपकलियों में पाए जाते हैं किंतु बाल्कन ग्रीन लिज़र्ड में इन्हें पहले कभी नहीं देखा गया था। यद्यपि ये कपाट द्वीपों और मुख्य भूभाग वाली दोनों स्थानों की छिपकलियों में पाए गए, किंतु द्वीपनिवासी छिपकलियों में ये अधिक प्रचलित थे (62 प्रतिशत में) जबकि मुख्य भूभाग वाली छिपकलियों में ये केवल 19 प्रतिशत में पाए गए।

इन सब अवलोकनों के मद्देनज़र प्रोफेसर सागोनास का तर्क है कि यूनान के द्वीपों पर कीटों की कमी के कारण छिपकलियों को वनस्पति पर अधिक निर्भर रहना पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक वरण के कारण उन शारीरिक परिवर्तनों को बढ़ावा मिल रहा है जो शाकाहारियों में पाए जाते हैं। अभी तक दोनों प्रकार की छिपकलियां आपस में प्रजनन कर सकती हैं जो उनके एक ही प्रजाति होने का प्रमाण है। किंतु संभव है कि निकट भविष्य में इनकी दो अलग-अलग प्रजातियां बन जाएं। (स्रोत फीचर्स)