इंडोनेशिया के छोटे से टापू (बावीयन) पर रहने वाला मस्सेदार सुअर शायद दुनिया का सबसे दुर्लभ सुअर है। यह सिर्फ इसी टापू पर पाया जाता है और एक रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रजाति के मात्र 230 सदस्य बचे हैं।
दरअसल, मस्सेदार सुअर दक्षिण-पूर्व एशिया के वासी हैं और कई आकार-प्रकार में मिलते हैं। इन्हें प्राय: एक ही प्रजाति की विभिन्न किस्में मान लिया जाता था। मगर अब पता चला है कि ये अलग-अलग प्रजातियां हैं। ये सुअर जंगल में खेतों में कंद खोद-खोदकर खाते हैं। इस वजह से किसान इन्हें अपना दुश्मन मानते हैं। खेतों में शिकारी कुत्ते पाले जाते हैं ताकि सुअर दूर रहें। कई बार किसान इन पर गोलियां भी चला देते हैं। इन कारणों से इनकी आबादी कम होती गई है।

इन सुअरों का अध्ययन करने वाले नेदरलैंड के वीएचएल विश्वविद्यालय के मार्क रेडमेकर ने बताया है कि बावीयन टापू पर रहने वाला यह मस्सेदार सुअर भी एक अलग प्रजाति है। इसकी अगली टांगों पर पीछे की ओर तीन गंध ग्रंथियां पाई जाती हैं जबकि अन्य सुअरों में चार गंध ग्रंथियां होती हैं। नर सुअर के चेहरे पर दोनों ओर तीन जोड़ी बड़े-बड़े मस्से होते हैं। रेडमेकर ने हाल ही में इस टापू पर खींचे गए 100 फोटो की मदद से यह अनुमान लगाया है कि इनकी संख्या 230 है। वैसे बावीयन टापू छोटा-सा ही है - इसकी लंबाई-चौड़ाई करीब डेढ़ किलोमीटर है।
वैसे तो बावीयन टापू के अंदरुनी भाग को 1930 में सुरक्षित घोषित कर दिया गया था मगर ऐसा लगता नहीं कि इससे कुछ खास मदद मिली है। रेडमेकर का कहना है कि इंडोनेशिया के वर्तमान कानून में इस सुअर के लिए कोई सुरक्षा नहीं है। वैसे रेडमेकर का कहना है कि टापू की साइज़ को देखते हुए लगता नहीं कि अतीत में कभी इन सुअरों की संख्या बहुत अधिक रही होगी।
यह टापू कई अन्य ऐसी प्रजातियों का आवास है जो सिर्फ यहीं पाई जाती हैं। जैसे अत्यंत जोखिमग्रस्त हिरन, सर्पेंट ईगल की एक प्रजाति और एक चकत्तेदार उल्लू। रेडमेकर ने अब एक संरक्षण परियोजना - बावीयन एंडेमिक्स कंज़र्वेशन इनिशिएटिव - स्थापित की है। उम्मीद है कि प्रकृति संरक्षण संघ की मदद से यहां की दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में कुछ कर पाएंगे। (स्रोत फीचर्स)