यह आम मान्यता है कि कृषि के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन ही भूजल स्तर में गिरावट के लिए ज़िम्मेदार है। अलबत्ता, हाल में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि भूजल भंडार में ह्रास का प्रमुख कारण शायद मानसून में हो रहे दीर्घावधि बदलाव हैं। यह अध्ययन नेचर जियोसाइन्स के हाल के अंक में प्रकाशित हुआ है।
भारत व अमेरिका के शोधकर्ताओं ने बरसात (बर्फबारी समेत) और भूजल निकासी के आंकड़े उपग्रहों के रिकॉर्ड्स और कुओं के स्थानीय जानकारी से प्राप्त किए। इन आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर शोधकर्ताओं का मत है कि भूजल का स्तर मूलत: घटती मानसूनी बारिश की वजह से घट रहा है।
कमज़ोर होते मानसून का सबसे ज़्यादा असर उत्तर-मध्य भारत में देखा गया और आंकड़े बताते हैं कि यहां भूजल में हो रही गिरावट अधिकांशत: बरसात की कमी की वजह से हुई है। दूसरी ओर, उत्तर-पश्चिमी भारत में इसके लिए बरसात की कमी और भूजल का निकास दोनों कारक ज़िम्मेदार हैं।
आंकड़े बताते हैं कि 2002 से 2013 के बीच उत्तरी भारत में भूजल के भंडार में प्रति वर्ष औसतन 2 प्रतिशत की कमी आई। इसके विपरीत, इसी अवधि में दक्षिणी भारत में भूजल भंडार में वृद्धि हुई जबकि इस अवधि में यहां कुओं की संख्या भी बढ़ी।

अध्ययन में यह भी देखा गया कि हिंद महासागर के बढ़े हुए तापमान के कारण उत्तरी भारत में बरसात में कमी आती है। बरसात कम होने से भूजल की निकासी बढ़ती है। समुद्र सतह के तापमान और भूजल भंडार के बीच यह दूरस्थ सम्बंध इस अध्ययन में पहली बार देखा गया है। अध्ययन से जुड़े एक वैज्ञानिक गांधीनगर आई.आई.टी. के विमल मिश्रा का कहना है कि इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि हमें बारिश के मौसम में भूजल पुनर्भरण के कार्य को और ज़्यादा मुस्तैदी से करना चाहिए और सूखे मौसम में भूजल का उपयोग ज़्यादा कार्यक्षम तरीकों से करना चाहिए। (स्रोत फीचर्स)