एक रोग होता है एएलएस यानी एमायलोट्रॉफिक लेटरल स्क्लेरोसिस। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति अपनी मांसपेशियों पर नियंत्रण गंवा देता है। यह लगातार बढ़ती जाती है और एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति अपनी आंखों को भी हिला-डुला नहीं सकता। अब दो उपकरणों की मदद से ऐसे व्यक्तियों ने मात्र विचारों के ज़रिए संवाद करने में सफलता प्राप्त की है।
यह काम जेनेवा के वाइस सेंटर के नील्स बिरबौमर और उनके साथियों ने कर दिखाया है। दरअसल बिरबौमर और उनके साथी यह समझना चाहते थे कि ऐसे पूर्णत: लकवाग्रस्त व्यक्ति क्या सोचते हैं। इसके लिए उन्होंने चार एएलएस पीड़ित लोगों को शामिल किया।
जिन दो उपकरणों का उपयोग किया गया उनमें से एक मस्तिष्क में प्रकाश पुंज फेंकता है और पता करता है कि किस हिस्से में रक्त प्रवाह कैसा हो रहा है। दूसरा उपकरण एक इलेक्ट्रो-एंसेफेलोग्राफी यंत्र है जो खोपड़ी के ऊपर लगाया जाता है और यह बताता रहता है कि दिमाग के किस हिस्से में सक्रियता है।

इन उपकरणों के साथ प्रयोग कर-करके टीम ने यह पहचान लिया कि किस तरह के पैटर्न का अर्थ ‘हां’ होता है और किस तरह के पैटर्न का मतलब ‘नहीं’ होता है। इसके बाद वे व्यक्ति से ऐसे सवाल पूछते थे जिनके उत्तर हां या ना में हों और जवाब शोधकर्ताओं को पहले से पता हों। जैसे वे उससे पूछेंगे कि क्या उसका नाम अमुक है? और एक ही प्रश्न को कई बार पूछते थे। धीरे-धीरे व्यक्ति द्वारा ‘हां’ और ‘ना’ की पहचान लगभग 70 प्रतिशत बार सही साबित होने लगी।
यदि दोनों यंत्रों से प्राप्त पैटर्न में 7 या अधिक बार हां होता तो वे उसे सही मान लेते थे। अब बारी आई ऐसे सवाल पूछने की जिनके उत्तर पता नहीं थे। ये सवाल उन व्यक्तियों के परिवार जनों ने पूछे। आम तौर पर माना जाता है कि ऐसे व्यक्ति का जीवन मायूसी भरा होता है। मगर जब परिवार के लोगों ने उनसे इस बारे में पूछा तो सभी ने कहा कि वे खुश हैं। एक व्यक्ति ने किसी शहर जाने की इच्छा व्यक्त की तो एक व्यक्ति ने किसी से मिलने की।
मज़ेदार बात यह रही कि एक व्यक्ति की पोती ने उससे पूछा कि क्या वे उसे अपने से कम उम्र के लड़के से शादी करने की अनुमति देंगे। व्यक्ति का स्पष्ट जवाब ‘ना’ था।
शोधकर्ता इन परिणामों से काफी आशान्वित हैं। खास तौर से इसलिए कि चारों व्यक्तियों ने अपने जीवन से निराशा व्यक्त नहीं की। (स्रोत फीचर्स)