कुछ शोधकर्ताओं ने फलभक्षी मक्खियों पर कुछ अजीबोगरीब अध्ययन करके पता लगाया है कि मोटापे की वजह से आयु कम हो जाती है। मगर पहले उन्हें मक्खियों में मोटापा पैदा करना पड़ा था जिसके लिए उन्होंने कुछ रसायनों का उपयोग किया।
सेल मेटाबोलिज़्म नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में सबसे पहले तो शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया कि मक्खियां कैसे तय करती हैं कि अब पेट भर गया। मनुष्यों में तो यह काम लेप्टिन नामक एक हारमोन की बदौलत होता है। जब पेट भर जाता है तो हमारी वसा कोशिकाएं लेप्टिन मुक्त करती हैं। लेप्टिन मस्तिष्क में पहुंचकर यह संदेश देता है कि भरपेट भोजन हो चुका है। यह देखा गया है कि जिन लोगों के शरीर में लेप्टिन नहीं बनता या मस्तिष्क में लेप्टिन को नहीं पहचाना जाता, उन्हें पता ही नहीं चलता कि पेट भर गया है और वे खाते चले जाते हैं।
अब पता चला है कि मक्खियों में भी इस तरह की व्यवस्था पाई जाती है। शोधकर्ताओं ने मक्खियों में भी इस तरह का एक हारमोन खोज निकाला है। जब उन्होंने मक्खियों में उस जीन को निष्क्रिय कर दिया जो इस हारमोन का निर्माण करता है, तो ऐसी हारमोन विहीन मक्खियां खाती चली गईं।

जब ऐसी हारमोन विहीन मक्खियों को भरपूर शकर वाली या अत्यधिक वसा वाली खुराक दी गई तो उन्होंने उसी तरह छककर खाया जैसा लेप्टिन विहीन मनुष्य करते हैं। और तो और, इन मक्खियों का वज़न सामान्य से तीन गुना तक हो गया और उनकी 90 दिन की औसत आयु में 6 प्रतिशत की कमी आई। यह भी देखा गया कि तीन सप्ताह तक ऐसी उच्च शर्करा, उच्च वसा खुराक की दावत उड़ाने के बाद यदि उन्हें वापिस सामान्य खुराक पर पाला जाए तो भी जो नुकसान होना था वह हो चुका होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि शर्करा का अत्यधिक बोझ जीन सक्रियता पर स्थायी नहीं, तो कम से कम दीर्घावधि असर ज़रूर डालता है।
रोचक बात यह देखी गई कि यदि इन मक्खियों को लेप्टिन दे दिया जाए तो उनमें अत्यधिक खाने की यह प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है। इसका मतलब है कि इन मक्खियों के अध्ययन से मनुष्यों के मोटापे के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)