हाल के अनुसंधान व विश्लेषण से पता चला है कि हिंद महासागर में एक महाद्वीप जलमग्न हो गया था और आज यह हिंद महासागर की तलहटी में भारत और मैडागास्कर के बीच है। इस जलमग्न महाद्वीप की खोज दक्षिण अफ्रीका के विटवाटर्सरैंड विश्वविद्यालय के लुइस आश्वाल और उनके साथियों ने की है।
ऐसे महाद्वीप की उपस्थिति का पहला संकेत यह था कि हिंद महासागर के कुछ हिस्सों में गुरुत्वाकर्षण असामान्य रूप से अधिक है। इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में भूपर्पटी ज़्यादा मोटी है। इसकी व्याख्या के लिए एक परिकल्पना यह प्रस्तुत की गई थी कि यहां कोई विशाल भूखंड समुद्र के अंदर समाया हुआ है। अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण वाला एक ऐसा स्थान मॉरिशस है। इसके आधार पर आश्वाल ने 2013 में प्रस्ताव दिया था कि संभवत: मॉरिशस एक जलमग्न महाद्वीप के ऊपर विराजमान है।

हालांकि मॉरिशस द्वीप मात्र 80 लाख साल पुराना है किंतु इसके समुद्र तटों पर कुछ ज़िरकॉन क्रिस्टल मिलते हैं जिनकी उम्र लगभग 2 अरब साल है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां ज्वालामुखियों के विस्फोट के साथ प्राचीन महाद्वीप के टुकड़े ज़मीन पर आ गए होंगे। यही कारण है कि यहां ज़िरकॉन क्रिस्टल के इतने प्राचीन नमूने मिले हैं। इस जलमग्न महाद्वीप को आश्वाल की टीम ने मॉरिशिया नाम दिया है।
उनके मुताबिक करीब साढ़े आठ करोड़ वर्ष पूर्व तक मॉरिशिया एक छोटा-सा महाद्वीप था (लगभग वर्तमान मैडागास्कर के बराबर)। यह भारत और मैडागास्कर के बीच स्थित था। उस समय भारत और मैडागास्कर एक-दूसरे के ज़्यादा समीप थे। कालांतर में ये दूर हटने लगे और मॉरिशिया भूखंड पर तनाव पैदा हुआ जिसकी वजह से वह बिखरने लगा। यही टुकड़े हिंद महासागर की गहराई में बैठे हैं और असामान्य गुरुत्वाकर्षण पैदा कर रहे हैं।

अब इस क्षेत्र में जलमग्न महाद्वीप के और भी अवशेष मिले हैं। इस बात के प्रमाण हैं कि हिंद महागासर के कई अन्य द्वीप भी मॉरिशिया के अवशेषों पर टिके हैं - इनमें कार्गाडेस केराजोस, लक्षद्वीप और चागोस द्वीप शामिल हैं।
और तो और, कई अन्य स्थानों पर अन्य महाद्वीपों की उपस्थिति के प्रमाण मिल रहे हैं। मसलन, हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के पश्चिम की ओर समुद्र में और आइसलैंड के नीचे भी ऐसे अवशेष मिले हैं। सचमुच हमारी पृथ्वी कभी चैन से नहीं बैठी है बल्कि सतत परिवर्तनशील और उथल-पुथल से भरी रही है। (स्रोत फीचर्स)