लगभग 26 लाख साल पहले विलुप्त हुई एक शार्क मछली ने 1.4 करोड़ वर्षों तक समुद्र पर राज किया था। कारचारोकल्स मेगालोडॉन नामक यह शार्क 16 मीटर तक लंबी होती थी और इसका 3 मीटर का जबड़ा इतना शक्तिशाली था कि वह एक छोटी-मोटी कार का कचूमर बना सकता था। मगर पर्यावरण ने पलटी खाई और यह शार्क विलुप्त हो गई।
पुराजीव वैज्ञानिकों ने मत व्यक्त किया है कि यह शार्क मछली अपने विशाल व मज़बूत जबड़ों के बावजूद भोजन के लिए बड़े शिकार पर नहीं बल्कि छोटी-छोटी व्हेल मछलियों पर निर्भर थी और यही इसकी विलुप्ति का कारण बना था।  ये निष्कर्ष उस समय के समुद्री जावों के जीवाश्मों पर इस विशाल शार्क के दांतों के निशान देखकर निकाला गया है। गौरतलब है कि मेगालोडॉन एक दांतवाली मछली थी।
विभिन्न जीवाश्मों पर मेगालोडॉन के दांतों के निशान से पता चलता है कि वह किस तरह के जीवों का शिकार करती होगी। हड्डियों पर दांतों के निशानों के आधार पर पीसा विश्वविद्यालय के अलबर्टो कोलारेटा का मत है कि मेगालोडॉन छोटी मछलियों को ज़्यादा पसंद करती थी। कोलारेटा और उनके साथियों ने पे डिग्री में पिस्को जीवाश्मों का अध्ययन किया है। उनके निष्कर्ष पेलियोजियॉग्राफी, पेलियोक्लाइमेटोलॉजी, पेलियोइकॉलॉजी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
फिर ऐसा हुआ कि जलवायु ठंडी होने लगी। समुद्र तल घटने लगा क्योंकि ज़्यादा से ज़्यादा पानी बर्फ के रूप में ध्रुवीय क्षेत्रों में जम गया। ऐसे ठंडे वातावरण में छोटी व्हेल का जीना मुश्किल हो गया और इसने बड़ी-बड़ी व्हेलों को फलने-फूलने के लिए उपयुक्त वातावरण मुहैया कराया। मगर मेगालोडॉन तो इन बड़ी मछलियों को खाती नहीं थी।
मगर अन्य पुराजीव वैज्ञानिक इस निष्कर्ष से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। जैसे अलाबामा प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के डैना एह्रेट का मत है कि उन्होंने कई ऐसे जीवाश्म नमूने देखे हैं जो काफी बड़ी मछलियों के हैं और उन पर मेगालोडॉन के दांतों के निशान हैं हालांकि हो सकता है कि ये निशान जीवित मछली पर नहीं बल्कि उसके मर जाने के बाद लगे हों। इसका मतलब यह होगा कि मेडालोडॉन कभी-कभी मृत जीवों को खाया करती होगी।
इन सब मामलों में अंतिम फैसला तो जब होगा, तब होगा मगर महत्वपूर्ण बात है कि वैज्ञानिक प्रकृति को समझने के लिए कैसे-कैसे प्रमाणों का उपयोग करते हैं। (स्रोत फीचर्स)