डॉ. ओ. पी. जोशी

स्रोत के अक्टूबर 2017 के अंक में प्रकाशित लेख ‘अमेज़न के पेड़ बारिश कराते हैं’ पढ़ा। लेख में बताया है कि पेड़ों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के दौरान बनी  जल वाष्प से पैदा नमी बारिश के लिए ज़िम्मेदार होती है। लेख में बताई गई उपरोक्त बात सही नहीं है। सही तरह से समझने हेतु हमें थोड़ा प्रकाश संश्लेषण एवं वाष्पोत्सर्जन की क्रिया को समझना होगा। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पेड़-पौधों के हरे भाग सौर ऊर्जा को ग्रहण कर वायुमंडल से कार्बन डाईऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर पर्णहरिम (क्लोरोफिल) की सहायता से कार्बनिक भोजन बना कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं।

6CO2 + 12H2O  C6H12O6 + 6H2O + 6O2

प्रकाश संश्लेषण का उपरोक्त समीकरण दर्शाता है कि इस क्रिया में पानी/जल की जितनी मात्रा ली जाती है उसका लगभग आधा भाग शेष बच जाता है। प्रस्तुत लेख दर्शाता है कि यही शेष जल वाष्प के रूप में निकलकर नमी पैदा करता है, जो सही नहीं है । लगभग सभी वनस्पति शास्त्र की पुस्तकों में अभी तक उपलब्ध जानकारियों के आधार पर यह बताया गया है कि जल कहीं से भी आया हो प्रकाश संश्लेषण या सीधे भूमि से परन्तु पौधों के वाष्पीय भागों (एरियल पार्ट्स) से वाष्प के रूप में वातावरण में छोड़ा जाता है। इस क्रिया को वाष्पोत्सर्जन (ट्रांसपाइरेशन) कहते है। जलवाष्प पौधों की तीन रचनाओं से बाहर निकलती है- पत्तियों पर उपस्थित रंध्र (स्टोमेटा), उपत्वचा (क्यूटिक्ल) तथा वात रंध्र (लेंटीसेल)। रंध्रों में खुलने व बंद होने की क्षमता पाई जाती है अत: पर्णरंध्रीय वाष्पोत्सर्जन एक नियंत्रित प्रक्रिया है। दूसरी ओर, उपत्वचा तथा वातरंध्रों से वाष्पोत्सर्जन पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। इस विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है जल की वाष्प से वातावरण में नमी जिस क्रिया से पैदा होती है वह वाष्पोत्सर्जन ही है। वातावरण को कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ पौधों (घास तथा अरबी) की पत्तियों के किनारों पर जल तरल अवस्था में जलरंध्रों से निकलता है जिसे बिन्दु रुााव (गटेशन) कहा जाता है।

वनों या पेड़ों से पैदा नमी बारिश को प्रभावित करती है या नहीं, इस पर दुनिया भर के वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। अमेरिका तथा जर्मनी के मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार वन 6 से 10 प्रतिशत तक बारिश बढ़ाते हैं। साथ ही, घने जंगलों के अलावा जंगलों के छोटे-छोटे टुकड़े/समूह बारिश को ज़्यादा प्रभावित करते हैं। हमारे देश में काफी वर्ष पूर्व डॉ. विलकर ने नीलगिरी की पहाड़ियों पर अध्ययन कर बताया था कि जंगलों से वर्षा का सीधा सम्बंध है। छोटा नागपुर क्षेत्र में मौसम वैज्ञानिक डॉ. रंगनाथन ने अपने अध्ययन के आधार पर वनों से वर्षा का बढ़ना बताया था। इंडियन इंस्टीट¬ूट ऑफ साइन्स के अध्ययन के अनुसार वनों से वायु का तापमान घटता है तथा पत्तियों के वाष्पोत्सर्जन के कारण वाष्प घनत्व बढ़ता है जिससे वर्षा होती है। पेड़ों से गिरे पत्तों के सड़ने से क्यूमिलस बादलों के निर्माण में सहायता मिलती है। पराग कण भी वर्षा में सहायक बताए गए हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि वन एवं वर्षा का अटूट सम्बंध है।

स्पष्टीकरण

डॉ. ओ.पी. जोशी की टिप्पणी पर यही कहा जा सकता है कि संदर्भित आलेख किताबी स्तर पर प्रमाणित ज्ञान का प्रस्तुतीकरण नहीं है बल्कि एक वास्तविक शोध परियोजना के निष्कर्षों पर आधारित है।
डॉ. जोशी का यह कहना सही है कि पानी का स्रोत कुछ भी हो मगर वह पेड़ों से वातावरण में जिस प्रक्रिया के द्वारा पहुंचेगा वह तो वाष्पोत्सर्जन ही होगी। आलेख में इस बात पर कोई भिन्न मत व्यक्त नहीं किया गया है। जिस अध्ययन की बात उस आलेख में हुई है, उसमें सवाल यही था कि क्या अमेज़न के वनों के ऊपर जो नमी बढ़ती है उसका स्रोत सीधे ज़मीन या जलराशियों से वाष्पित पानी है या पौधों में होकर वातावरण में पहुंचने वाला पानी है। इन दो तरह पानियों के बीच भेद करने के लिए शोधकर्ताओं ने उनमें हाइड्रोजन/ड¬ूटीरियम की उपस्थिति का सहारा लिया और दर्शाया कि वह पानी पेड़ों के ज़रिए वातावरण में पहुंचा है। वैसे यह भी स्पष्ट करना ज़रूरी है कि वाष्पोत्सर्जन एक प्रक्रिया है, पानी का स्रोत नहीं। अत: यह एक प्रश्न तो रहता है कि स्टोमेटा, वातरंध्र और उपत्वचा से जो पानी उड़ाया जाता वह आता कहां से है। चूंकि वन में हरियाली का बढ़ना और वातावरण में नमी का बढ़ना एक साथ होने वाली प्रक्रिया थी, इसलिए शोधकर्ताओं ने इनके सम्बंध पर ध्यान केंद्रित किया।