डॉ. विजय कुमार उपाध्याय

डेमोक्रिटस को प्राचीन यूनानी दार्शनिकों में सबसे महान माना जाता है। वे परमाणु की अवधारणा के प्रवर्तकों में से एक थे। कई विद्वानों का मानना है कि परमाणु सम्बंधी अवधारणा का विकास उन्होंने प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक कणाद द्वारा लिखित ग्रंथ वैशेषिक दर्शन के अध्ययन के आधार पर किया था।
डेमोक्रिटस का जन्म यूनान के अबडेरा नामक स्थान पर हुआ था। यह स्थान थ्रेस क्षेत्र में पड़ता है। कुछ विद्वानों के मतानुसार उनका जन्म मिलेटस नामक स्थान पर हुआ था। यह स्थान एशिया माइनर में स्थित था। मिलेटस नामक स्थान आज टर्की तथा यूनान की सीमा पर स्थित है। डेमोक्रिटस के जन्म काल के बारे में ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है परन्तु अनुमान लगाया गया है कि उनका जन्म 470 वर्ष ईसा पूर्व में हुआ था। डायोडोरस सिकुलस नामक विद्वान के अनुसार डेमोक्रिटस की मृत्यु 90 वर्ष की अवस्था में हुई थी जबकि कुछ अन्य विद्वानों के मुताबिक वे कम से कम 110 वर्ष की उम्र तक जीवित रहे थे।

उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि डेमोक्रिटस के पास काफी अधिक पुश्तैनी सम्पत्ति थी जिसकी बदौलत उन्होंने अनेक देशों का भ्रमण किया। इतिहासकारों का अनुमान है कि वे भारत भी आए थे तथा वेद, पुराण तथा दर्शन ग्रंथों का अध्ययन किया था। इन ग्रंथों में उन्होंने कणाद के वैशेषिक दर्शन को सबसे अधिक पसंद किया तथा इसी के अध्ययन के आधार पर परमाणु सम्बंधी अपनी अवधारणा का प्रतिपादन किया। मिरुा में उन्होंने प्राचीन गणित तथा भौतिकी का अध्ययन किया था।
डायोजिनस लैग्टिसस नामक विद्वान के मतानुसार डेमोक्रिटस ने कुल 72 पुस्तकें लिखी थीं। महान दर्शनिक अरस्तू के समान, डेमोक्रिटस ने भी उस काल में प्रचलित लगभग सभी विषयों - परमाणु सिद्धांत, ब्राहृाण्ड विज्ञान, दर्शन, धर्म, नीति शास्त्र, समाज विज्ञान आदि - पर अपने विचार व्यक्त किए थे तथा सिद्धांतों का प्रतिपादन किया था।

कुछ विद्वानों का मानना है कि डेमोक्रिटस के परमाणु तथा ब्राहृाण्ड सम्बंधी सिद्धान्त ल्यूसिपस के सिद्धान्तों के परिवर्तित एवं संशोधित रूप थे। ल्यूसिपस का जन्म भी पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व एशिया माइनर के मिलेटस नामक स्थान पर हुआ था। ल्यूसिपस ने प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक महर्षि कणाद का अनुसरण करते हुए बताया था कि संसार के सभी पदार्थ छोटे-छोटे कणों से निर्मित हैं। कुछ समय बाद डेमोक्रिटस ने कणाद तथा ल्यूसिपस के उपरोक्त परमाणु सिद्धान्त को आगे बढ़ाया।

ल्यूसिपस से पहले एशिया माइनर में पदार्थों की संरचना सम्बंधी दो परस्पर विपरीत विचारधाराएं प्रचलित थीं। पहली थी इलियाटिक विचारधारा जिसके अनुसार किसी भी पदार्थ का एक ही रूप सम्भव है। उसके कणों का स्वतंत्र अस्तित्व अर्थहीन है। इलियाटिक विचारधारा की उत्पत्ति इटली के इलिया नामक स्थान पर हुई थी। दूसरी विचारधारा का प्रतिपादन एम्पिडोकल्स द्वारा किया गया था। इस विचारधारा के अनुसार संसार का हर पदार्थ असंख्य सूक्ष्म कणों से बना हुआ है। ये कण परमाणु (ऐटम) कहे जाते हैं। ये परमाणु हमें दिखाई नहीं देते। ये कण इतने सूक्ष्म हैं कि उनका आकार और अधिक छोटा नहीं किया जा सकता। ये परमाणु अपने आप में पूर्ण हैं तथा असंपीड्य हैं। इन परमाणुओं में कोई भी रंध्र उपस्थित नहीं है तथा जितना स्थान वे घेरते हैं, उसे पूर्ण रूप से घेर लेते हैं। वे अपने आप में समांग होते हैं। डेमोक्रिटस का विचार था कि संसार के सभी पदार्थों में एक ही प्रकार के परमाणु उपस्थित हैं। पदार्थों के गुणों में अन्तर का कारण है। उन पदार्थों में उपस्थित परमाणुओं की सजावट में भिन्नता - अलग-अलग पदार्थों के परमाणु विन्यास तथा परमाणु संयोग भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं। कोई पदार्थ  घना है या विरल, कड़ा है या मुलायम, यह अन्तर इस बात पर निर्भर करता है कि कोई स्थान विशेष परमाणुओं से भरा है या खोखला।

उदाहरण के लिए लोहे तथा पानी पर विचार करें। डेमोक्रिटस के मतानुसार इन दोनों पदार्थों में एक ही प्रकार के परमाणु मौजूद हैं। पानी में उपस्थित परमाणु चिकने होने के कारण एक-दूसरे के ऊपर लुढ़कते रहते हैं जिसके कारण पानी में तरलता होती है। इसके कारण इसमें प्रवाहित होने का गुण है। परन्तु लोहे के परमाणु रूखे होने के कारण एक-दूसरे पर नहीं लुढ़क सकते, बल्कि एक-दूसरे पर सट जाते हैं जिसके कारण वे ठोस का रूप प्रदान करते हैं।

डेमोक्रिटस के मतानुसार परमाणु अनश्वरहैं, इस कारण यह मानना गलत है कि किसी नई चीज़ का निर्माण हुआ अथवा किसी चीज़ का विनाश हुआ। परन्तु परमाणुओं से निर्मित वस्तु का आकार घट-बढ़ सकता है तथा वे प्रगट हो सकते हैं या विलोपित हो सकते हैं। इसी को हम दूसरी भाषा में उत्पत्ति या विनाश कहते हैं। परन्तु वास्तविकता यह है कि परमाणुओं का न तो उद्भव होता है और न विनाश। परमाणुओं के मिलने या बिखरने से पदार्थों का निर्माण या विनाश होता है, परमाणुओं का नहीं। जंतुओं या वनस्पतियों की वृद्धि परमाणुओं के लगातार जुड़ते जाने से होती है। जब किसी जंतु या वनस्पति की मृत्यु होती है तो उसके शरीर से परमाणु मुक्त होते जाते हैं तथा इसके फलस्वरूप शरीर का क्षय होता जाता है। अंतत: इनके शरीर में उपस्थित सभी परमाणु बिखर कर वायु तथा मिट्टी में मिल जाते हैं।

डेमोक्रिटस ने ब्राहृाण्ड की उत्पत्ति तथा विकास के सम्बंध में भी विचार व्यक्त किए थे। ब्राहृाण्ड की उत्पत्ति के बारे में उन्होंने बताया था -- “प्रारम्भ में परमाणुओं की गतियां प्रत्येक दिशा में थीं। अर्थात् उस काल में सभी परमाणु कम्पन की अवस्था में थे। इस कम्पन के कारण परमाणु आपस में टकराने लगे तथा एक-दूसरे से जुड़ कर बड़े-बड़े पिण्डों का निर्माण करने लगे। इस प्रकार विभिन्न खगोलीय पिण्डों (जैसे तारे, ग्रह, उपग्रह तथा धूमकेतु इत्यादि) का निर्माण हुआ। परमाणुओं के आपस में जुड़ने का कोई नियम नहीं था। यही कारण है कि कुछ ग्रह तो काफी बड़े हुए तो कुछ काफी छोटे।” डेमोक्रिटस की मान्यता थी कि ब्राहृाण्ड के सभी पिण्ड एक ही तरह के परमाणुओं से निर्मित हैं।

डेमोक्रिटस ने आत्मा के सम्बंध में भी विचार व्यक्त किए थे। उनके मतानुसार मानव शरीर में सर्व प्रमुख अंग आत्मा है। आत्मा शरीर के प्रत्येक अंग में व्याप्त है। आत्मा का परमाणु दो शारीरिक परमाणु के मध्य अंतर्वेशित है। आत्मा के परमाणु शरीर के  विभिन्न अंगों में भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्य करने में सक्षम हैं। जैसे मस्तिष्क में सोचने की शक्ति, ह्मदय में क्रोध या प्रेम की भावना तथा जिगर में इच्छा शक्ति इत्यादि। जीवन के निर्वाह के लिए सांस द्वारा नए परमाणु पुराने परमाणुओं का स्थान लेते हैं। यदि सांस द्वारा नए परमाणुओं की आपूर्ति शरीर को बन्द कर दी जाए तो उस जीव की मृत्यु तत्काल हो जाती है। इस प्रकार शरीर के साथ-साथ आत्मा की भी समाप्ति हो जाती है।

आत्मा की मरणशीलता सम्बंधी यह विचार प्राचीन भारतीय दार्शनिकों द्वारा व्यक्त विचारों के ठीक विपरीत है। भारत के वैदिक एवं पौराणिक ग्रंथों में आत्मा को अमर बताया गया है तथा शरीर को मरणशील। डेमोक्रिटस के मतानुसार मानव के मन में उठने वाली विभिन्न भावनाओं की उत्पत्ति आत्मा के साथ बाहरी वस्तुओं के सम्पर्क के कारण होती है। इस प्रक्रिया में आत्मा के परमाणु अन्य पदार्थों के परमाणुओं से प्रभावित होते हैं। परन्तु स्वाद की अनुभूति (खट्टा, मीठा इत्यादि) आत्मा के इस प्रकार के सम्पर्क के कारण नहीं होती, बल्कि पदार्थों के आकार एवं आकृति के कारण ये उन पदार्थों के प्राकृतिक गुण हैं।

डेमोक्रिटस ने जीव विज्ञान एवं शरीर क्रिया विज्ञान से सम्बंधित तीन पुस्तकें लिखी थीं। उसका विचार था कि प्रारम्भ में मानव की उत्पत्ति कीचड़ तथा पानी से हुई, ठीक उसी प्रकार जैसे (उनके मतानुसार) आज केंचुए तथा अन्य कीट उत्पन्न होते हैं। उन्होंने भ्रूण विज्ञान तथा जंतु विज्ञान के सम्बंध में कई विचार प्रस्तुत किए। जानवरों के सींग किस प्रकार विकसित होते हैं, मकड़ी का जाला कैसे बनता है, उल्लू की आंखों में क्या विशेषता है, तथा इसी प्रकार के अन्य कई विषयों पर उन्होंने विचार व्यक्त किए। वनस्पतियों के सम्बंध में भी उन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम था ‘दी कॉज़ेस कंसन्र्ड विद सीड्स, प्लांट्स एंड फ्रूट्स’। 

डेमोक्रिटस संसार के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रंगों की व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उनका विचार था कि किसी वस्तु का रंग उसकी स्थिति के कारण उत्पन्न होता है न कि वस्तु के परमाणुओं की आकृति के कारण। डेमोक्रिटस के मतानुसार मूल रंग सिर्फ चार ही हैं। ये चार रंग हैं श्वेत, लाल, हरा, तथा काला। शेष सभी रंग इन्हीं मूल रंगों के आपस में मिलने से बनते हैं तथा इनकी संख्या बहुत अधिक हो सकती है। उन्होंने बताया कि उजला रंग चिकनी तथा सपाट सतह से उत्पन्न होता है। इसका कारण यह है कि सपाट सतह में गहराई नहीं रहने के कारण छाया नहीं बनती। वस्तुत: यह छाया ही कालापन पैदा करती है जिससे गहराई के अनुसार अन्य रंग बनते हैं। इसी प्रकार काला रंग खुरदरी सतह से उत्पन्न होता है।

डेमोक्रिटस के अनुसार मनुष्य का मस्तिष्क सघनता से बंधे हुए आत्मा परमाणुओं से निर्मित रहता है। यह उन सब परमाणुओं से प्रभावित होता है जो अनुभूति तंत्र को बिना प्रभावित किए मस्तिष्क तक प्रवेश कर सकते हैं। डेमोक्रिटस ने भ्रामक अनुभव और सही अनुभव के बीच भेद बताया। भ्रामक अनुभव सिर्फ अनुभूति तंत्र से प्रभावित होता है, जबकि सही अनुभव मस्तिष्क द्वारा प्राप्त होता है।
डेमोक्रिटस ने अध्यात्म सम्बंधी विचार भी व्यक्त किए। ईश्वर में विश्वास के सम्बंध में उनका कहना था कि यह इस कारण से होता है कि मानव कुछ प्राकृतिक घटनाओं को सही ढंग से नहीं समझ पाता। ऐसी प्राकृतिक घटनाओं में शामिल हैं मेघ गर्जन, तड़ित, भूकंप इत्यादि। इस प्रकार के असाधारण दृश्यों का ख्याल जब मानव मस्तिष्क में आता है तो उसका प्रभाव कभी तो लाभदायक होता है तो कभी हानिकारक। यदि ईश्वर पर विश्वास कर इन दृश्यों को सही ढंग से समझने का प्रयास किया जाए तो वह उनसे लाभ उठा सकता है तथा उनके हानिकारक प्रभावों से बच सकता है।

उन्होंने नीति सम्बंधी विचार भी व्यक्त किए और नैतिक सिद्धांतों से सम्बंधित एक पुस्तक लिखी जो काफी लोकप्रिय हुई। यह ग्रंथ सैद्धांतिक के बदले व्यवहार पक्ष पर अधिक ज़ोर देता है। जैसे ज्ञान के क्षेत्र में एक अंतिम सत्य होता है, वैसे ही नैतिक क्षेत्र में भी एक अंतिम सत्य है उत्साह। यह वह स्थिति है जिसमें आत्मा शांतिपूर्वक रहती है। इस स्थिति में आत्मा भय तथा अंधविश्वास से अप्रभावित रहती है। डेमोक्रिटस का कहना था कि नैतिक जीवन व्यतीत करने के फलस्वरूप मानव को आनंद की प्राप्ति होती है। (स्रोत फीचर्स)