विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य व विकास पर काम करने वाली 50 अन्य संस्थाएं मिलकर हैजा पर जंग छेड़ने की तैयारी कर रही हैं। हैजा एक जल-वाहित रोग है जो एक बैक्टीरिया की वजह से होता है। फिलहाल हैजा की वजह से हर साल दुनिया भर में 95,000 मौतें होती हैं। मुहिम का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक इन मौतों में कम से कम 90 प्रतिशत की कमी की जाए।
ग्लोबल टास्क फोर्स ऑन कॉलेरा कंट्रोल के मुताबिक दुनिया के 47 देशों में हैजा का प्रकोप होता है। मुहिम का लक्ष्य होगा कि इनमें से 20 देशों में तो हैजा का पूरी तरह सफाया हो जाए जबकि शेष 27 देशों में यह स्थिति आ जाए कि वे कोई महामारी फैलने से पहले इसे पहचान कर नियंत्रण के उपाय कर सकें।

हैजा के खिलाफ जंग कोई छोटी-मोटी चुनौती नहीं है। एशिया और अफ्रीका में हर साल 30 लाख लोग हैजा से बीमार होते हैं। आशंका है कि वैश्विक तापमान बढ़ने तथा बढ़ते शहरीकरण के साथ इस जानलेवा बीमारी का प्रकोप बढ़ेगा। आपातकालीन समस्याओं के विशेषज्ञों का मत है कि बांग्लादेश के रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में हैजा एक महामारी की तरह फैल सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के पीटर सालामा का कहना है कि हैजा मल-प्रदूषित पानी के साथ फैलता है। जिन देशों में इस पर नियंत्रण पाया गया है उनमें ऐसा टीकों की बदौलत नहीं बल्कि शौचालयों और स्वच्छता व्यवस्था के चलते संभव हुआ है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गरीब देशों में आज भी करीब 2 अरब लोग मल-प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं और 2.4 अरब लोगों को शौचालय उपलब्ध नहीं हैं। संगठन का कहना है कि शौच व्यवस्था में किए गए खर्च को निवेश मानकर बढ़ाया जाना चाहिए, खास तौर से उन इलाकों में जहां हैजा का खतरा है क्योंकि ये इलाके हैजा के स्रोत बन जाते हैं।
ताज़ा मुहिम में एक महत्वपूर्ण उपाय हैजा का वह टीका है जिसे मुंह से दिया जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में मुंह से दिए जाने वाले इस टीके की प्रभाविता साबित हो चुकी है। (स्रोत फीचर्स)