चक्रेश जैन

वर्ष 2017 का चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार जैविक घड़ी की जीन स्तर पर व्याख्या के लिए अमेरिका के तीन अनुसंधानकर्ताओं - जैफरी हॉल, माइकल रोसबाश और माइकल यंग को संयुक्त रूप से देने की घोषणा की गई है। तीनों ही वैज्ञानिकों को जीवन के उत्तराद्र्ध में जो बड़ा और अति प्रतिष्ठित सम्मान मिला है, शायद उन्होंने पूर्वाद्र्ध में इसकी कल्पना नहीं की थी।

पिछले दो दशकों के दौरान दिए गए पुरस्कारों पर गौर करें तो पता चलता है कि कोशिका विज्ञान अथवा आणविक जीव विज्ञान पर केंद्रित शोध को पुरस्कारों के लिए चुना गया है। बीते साल चिकित्सा विज्ञान का नोबेल जापान के कोशिका विज्ञानी योशिनोरी ओशुमी को कोशिका के भीतर स्व-भक्षण प्रक्रिया पर शोध के लिए दिया गया था। महाअणु डीएनए और माइटोकॉन्ड्रिया सभी कोशिका के महत्वपूर्ण घटक हैं, जिन पर शोध के लिए नोबेल सहित अन्य पुरस्कार दिए गए हैं। कोशिका जीवन की बुनियादी इकाई है। जीवन का आरंभ और अवसान भी कोशिका के अस्तित्व से जुड़ा है। कोशिका को समझ कर ही बीमारियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

आनुवंशिकी सम्बंधी अधिकांश प्रयोगों और अनुसंधानों का आधार एक मामूली मक्खी है, जिसे अंग्रेज़ी में फ्रूट फ्लॉय और विज्ञान की भाषा में ड्रोसोफिला कहते हैं। यह वही मक्खी है, जिसने हमारे भीतर रात-दिन टिक-टिक कर रही जैविक घड़ी की आणविक व्याख्या में अहम भूमिका निभाई है। जैविक घड़ी को सर्केडियन घड़ी भी कहते हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी अपनी एक लय होती है।
जैविक घड़ी पर लंबी अवधि से शोधकार्य जारी है और वैज्ञानिकों को पता है कि यह न केवल मनुष्य बल्कि पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं में भी विद्यमान है। अंतत: शोधकर्ताओं ने उस जीन का पता लगा लिया है, जो इस घड़ी की बुनियाद है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस घड़ी का सीधा तालमेल पृथ्वी की परिक्रमा से जुड़ा है। इसी कारण जैविक घड़ी को दिन-रात का पता चलता रहता है। शोधकर्ताओं ने अध्ययनों के दौरान यह भी बताया कि 24 घंटों के दौरान हमारे शरीर में किस तरह के आणविक परिवर्तन होते हैं।

अठारवीं सदी के पूर्वाद्र्ध में फ्रांसीसी वैज्ञानिक ज़्यां जैक्स डीआरटोस डी मार्टिन ने शोध अध्ययनों में बताया था कि अंधेरे डिब्बे में स्थिर तापमान पर रखे पौधों ने अपनी पत्तियों के खुलने और बंद होने की लय को बनाए रखा था। मार्टिन आगे चलकर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पौधों ने सूर्य को देखे बिना ही समय की अनुभूति की थी।

1984 में दो अलग-अलग रिसर्च टीमों ने जैविक घड़ी के जीन का पता लगाने की दिशा में प्रयोग किए थे। दोनों टीमों ने मॉडल के रूप में ड्रोसोफिला का इस्तेमाल किया। जैफरी हॉल और माइकल रोसबाश ने ड्रोसोफिला के डीएनए अणु से एक जीन को सफलतापूर्वक पृथक किया और उसे नाम दिया ‘पीरियड’। यह वही जीन है जो इस मक्खी में दैनिक लय को नियंत्रित करता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि पीरियड एक अन्य जीन को एक प्रकार का प्रोटीन बनाने का निर्देश होता है, जिसे पीईआर कहते हैं। जब पीईआर प्रोटीन का स्तर बढ़ जाता है तो वह अपने आप प्रोटीन बनाने के निर्देशों को रोक देता है। इस प्रकार पीईआर का स्तर चौबीस घंटे के दौरान कम-ज़्यादा होता रहता है। यह रात्रि में बढ़ता है, जबकि दिन में घट जाता है। हॉल और रोसबाश ने आगे चलकर यह भी बताया कि पीईआर प्रोटीन रात्रि में कोशिका के केंद्रक के भीतर बनता है।

प्रोफेसर माइकल यंग ने 1994 में दो और नए जीन्स खोज निकाले। उन्होंने पहले जीन को ‘टाइमलेस’ नाम दिया। दरअसल यह जीन टीआईएम प्रोटीन के निर्माण का निर्देश देता है। यह वही प्रोटीन है, जिसकी सामान्य दैनिक लय के लिए ज़रूरत पड़़ती है। माइकल यंग ने बताया कि टीआईएम और पीईआर प्रोटीन संयुक्त होकर कोशिका के केंद्रक में पहुंच जाते हैं। उन्होंने बाद में एक और जीन का पता लगाया, जिसे ‘डबल टाइम’ नाम दिया गया। अध्ययनों के दौरान पता चला कि दोनों ही जीन पीईआर की स्थिरता पर असर डालते हैं। जैविक घड़ी पर की गई रिसर्च का रोचक पहलू यह है कि पीईआर की स्थिरता के कारण कुछ लोग प्रात: उठना पसंद करते हैं, जबकि कुछ लोग देर रात तक जागना चाहते हैं।

जैविक घड़ी पर शोधरत तीनों वैज्ञानिकों ने उन अतिरिक्त प्रोटीन्स का भी पता लगा लिया, जिनकी पीरियड जीन को सक्रिय करने के साथ उस क्रियाविधि के लिए भी ज़रूरत होती है, जिसमें प्रकाश और जैविक घड़ी के मध्य तालमेल स्थापित हो जाता है। तीनों वैज्ञानिकों की रिसर्च से ‘सर्केडियन जीव विज्ञान’ का जन्म हुआ है। इसे शोध के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इसका सरोकार मनुष्य के अच्छे स्वास्थ्य से जुड़ा है।

जैविक घड़ी के अध्ययन से जुडे़ सभी शोधार्थियों ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि चौबीस घंटे के चक्र में मनुष्य पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है। सूर्योदय के आसपास कार्टिसोल हारमोन बनता है, जिसकी वजह से हम बिस्तर छोड़कर रोज़मर्रा की गतिविधियों में जुट जाते हैं। सुबह 6 से 9 बजे के बीच ब्लड प्रेशर थोड़ा बढ़ जाता है, जिसका उद्देश्य शरीर को बाहरी दबाव के अनुसार ढालना है। प्रात: नौ बजे से लेकर मध्यान्ह 12 बजे तक हमारा शरीर सबसे अधिक सतर्क रहता है। मध्यान्ह 12 बजे से दोपहर 3 बजे तक का समय सभी कार्यों के तालमेल के लिए सर्वश्रेष्ठ है। दोपहर 3-6 बजे के दौरान तीव्र प्रतिक्रियाएं होती हैं। सूर्यास्त के आसपास हमारे शरीर का तापमान सबसे अधिक होता है। सायंकाल 6 से रात 9 बजे तक ब्लड प्रेशर उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है। यह वही अवधि है, जब हमें लगता है कि कुछ देर सुस्ताना चाहिए। रात्रि 9 बजे शरीर में मेलेटोनिन हारमोन बनने लगता है, जिसका उद्देश्य नींद आने के लिए उन्मुखीकरण है। इस दौरान शरीर का तापमान सबसे कम होता है।
वास्तव में दैनिक लय ने शरीर में विभिन्न चरणों में होने वाली गतिविधियों के साथ तालमेल स्थापित कर लिया है। इसका प्रभाव हारमोन के स्तर, नींद, व्यवहार, शारीरिक क्रियाओं, शरीर के तापमान आदि पर पड़ता है। आंतरिक घड़ी अथवा जैविक घड़ी और बाहरी वातावरण के बीच संतुलन गड़बड़ाने पर सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ता है। मनुष्य पर लंबी हवाई यात्रा के दौरान जेट लैग का असर दिखाई देता है। इसमें यात्रियों को सिरदर्द, नींद और शरीर दर्द जैसे कष्टों का सामना करना पड़ता है।

तीनों वैज्ञानिक विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं। उनके पास शिक्षण और शोधकार्य दोनों का दीर्घ और व्यापक अनुभव है। एक बात और, इन सभी अध्येताओं को पूर्व में अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं। कुल मिलाकर, सभी वैज्ञानिक जीवन के उत्तराद्र्ध में अति प्रतिष्ठित सम्मान मिलने पर बेहद खुश हैं।
इस वर्ष का नोबेल पुरस्कार भी मनुष्य की भलाई की दिशा में किए गए प्रयासों के लिए दिया जा रहा है। वस्तुत: शोधकर्ताओं ने जैविक घड़ी की जीन स्तर पर व्याख्या करके नई संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त किया है। पहला, चिकित्सक यह निर्णय कर सकेंगे कि कौन-सा ऑपरेशन किस समय करना चाहिए। दूसरा, जो दवाइयां हम लेते हैं, उनका सबसे अधिक असर किस समय दिखाई देगा।

चिकित्सा विज्ञान के नोबेल विजेता यशस्वी वैज्ञानिकों को दिसम्बर के प्रथम पखवाडे़ में स्टॉकहोम में आयोजित एक भव्य और गरिमामय समारोह में नब्बे लाख स्वीडिश क्रोनर (ग्यारह लाख डॉलर अथवा लगभग सवा सात करोड़ रुपये), प्रशस्ति-पत्र और पदक से सम्मानित किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)