चीन के सुन यात-सेन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मानव भ्रूण में जेनेटिक फेरबदल करके एक संभावित रक्त दोष के उपचार का दावा किया है। इसके लिए उन्होंने आनुवंशिक पदार्थ डीएनए में परिवर्तन करने की नवीन तकनीक क्रिस्पर-कास 9 का उपयोग किया है। प्रोटीन एंड सेल नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र के मुताबिक जुनजिऊ हुआंग के नेतृत्व में चीन के शोधकर्ताओं की टीम ने तकनीक का अत्यंत नवाचारी उपयोग करके यह सफलता हासिल की है।

सबसे पहले तो उन्होंने सीधे-सीधे मानव भ्रूण का उपयोग नहीं किया। मानव भ्रूण का उपयोग करने में नैतिक अड़चनों के अलावा एक दिक्कत यह भी थी कि एक ही समस्या से ग्रस्त भ्रूण बड़ी संख्या में मिल पाना बहुत मुश्किल था। टीम ने इसके लिए क्लोनिंग की तकनीक का उपयोग किया। एक व्यक्ति के डीएनए में एक खास किस्म का म्यूटेशन था जो उसमें जानलेवा एनीमिया पैदा करने की क्षमता रखता है। टीम ने इस व्यक्ति की त्वचा की कोशिकाएं लेकर उनका क्लोनिंग करके कई भ्रूण विकसित किए जिनमें उपरोक्त म्यूटेशन मौजूद था।

आम तौर पर जेनेटिक चिकित्सा सम्बंधी प्रयोगों में वैज्ञानिक डीएनए में किसी जीन को बदलने का प्रयास करते हैं। किंतु हुआंग की टीम ने ऐसा नहीं किया। डीएनए दरअसल चार क्षारों की एक लड़ी होती है और क्षार के क्रम से तय होता है कि उस लड़ी का कौन-सा हिस्सा कौन-सा प्रोटीन बनाएगा। ऐसे एक हिस्से को जीन कहते हैं।
हुआंग की टीम ने देखा कि उक्त रक्त दोष के लिए जो जीन ज़िम्मेदार है, उसमें मात्र एक क्षार की वजह से समस्या पैदा होती है। अत: टीम ने क्रिस्पर-कास 9 तकनीक का इस्तेमाल करते हुए क्लोनिंग से प्राप्त भ्रूणों में मात्र उस एक क्षार को बदल दिया। उन्होंने जिन 20 भ्रूणों पर यह प्रयोग किया उनमें से 8 में गलत क्षार को हटाकर सही क्षार जोड़ने में सफलता मिली है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि 20 में 8 भ्रूण में ही परिवर्तन हो पाने का मतलब है कि सफलता आंशिक ही है और अभी यह तरीका एक चिकित्सा तकनीक के रूप में काम नहीं आ सकता मगर इसके ज़रिए उन्होंने इतना तो दर्शा ही दिया है कि एक-एक क्षार को बदलने के सिद्धांत को व्यवहार में बदला जा सकता है। इस तरह के शोध में एक बड़ी बाधा यह है कि मानव भ्रूण को पूर्ण जीव बनने तक विकसित नहीं किया जा सकता। इसलिए इस तरह के प्रयोग करने वाले वैज्ञानिक भ्रूण को कुछ ही दिनों बाद नष्ट कर देते हैं। इसलिए अभी यह नहीं कहा जा सकता कि ऐसे जेनेटिक परिवर्तनों का स्वास्थ्य पर क्या असर होगा। (स्रोत फीचर्स)