इन दिनों अमेरिका में वैज्ञानिक समुदाय गंभीर संकट का सामना कर रहा है। नेचर पत्रिका के एक हालिया सर्वे के मुताबिक 75 प्रतिशत वैज्ञानिक अमेरिका छोड़ने पर विचार कर रहे हैं। इस निर्णय का मुख्य कारण राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन द्वारा अनुसंधान फंडिंग और नीतियों में बड़ा बदलाव बताया जा रहा है। युवा वैज्ञानिकों, खासकर पीएचडी छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए हालात और भी चिंताजनक है। इनमें से अधिकांश शोधकर्ता युरोप या कनाडा जाने की योजना बना रहे हैं।  
इस संकट की जड़ फंडिंग में भारी कटौती और वैज्ञानिकों की बड़े पैमाने पर छंटनी है, जो अरबपति एलन मस्क की लागत-कटौती योजना का हिस्सा है। इसके तहत संघीय वित्त पोषित कई शोध परियोजनाएं बंद कर दी गई हैं, हज़ारों वैज्ञानिक नौकरी गंवा चुके हैं या फंडिंग के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके अलावा, आप्रवासन नीतियों में सख्ती और अकादमिक स्वतंत्रता पर लगे प्रतिबंधों ने स्थिति को और अस्थिर बना दिया है, जिससे कई वैज्ञानिक अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
एक शीर्ष विश्वविद्यालय में प्लांट जीनोमिक्स की छात्रा ने बताया कि यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट की फंडिंग कटने के बाद उनका शोध अनुदान बंद हो गया। उनके प्रोफेसर ने आपातकालीन फंडिंग की व्यवस्था तो की, लेकिन अब उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए शिक्षण-सहायक पदों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। वे युरोप, ऑस्ट्रेलिया और मेक्सिको में अवसरों की तलाश कर रही हैं।
यह संकट खासकर युवा वैज्ञानिकों के लिए कठिन है। वरिष्ठ शोधकर्ताओं के पास तो स्थिर फंडिंग होती है, लेकिन शुरुआती करियर में वैज्ञानिकों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 
अब कई वैज्ञानिक ऐसे देशों की तलाश कर रहे हैं जहां शोध और विज्ञान को महत्व दिया जाता है। कुछ को उम्मीद है कि अगर अमेरिका में स्थिति सुधरती है, तो वे लौट सकते हैं, लेकिन कइयों के पास विदेश में बसने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है। निजी संगठनों से फंडिंग मिलना एक विकल्प हो सकता है, लेकिन सीमित संसाधनों के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा इसे अनिश्चित बना रही है।  
अमेरिका में विज्ञान और शोध की स्थिति में आया यह संकट दर्शाता है कि सरकार की नीतियां अनुसंधान के भविष्य को किस कदर प्रभावित कर सकती हैं। (स्रोत फीचर्स)