हमारे समाज में सेलिब्रिटी उस हस्ती या शख्स को कहा जाता है जो प्रतिष्ठित हो। जिसे अभिनय, राजनीति, फैशन, खेल या संगीत जैसे किसी क्षेत्र में विशेष रुतबा हासिल हो। इन ख्याति प्राप्त लोगों की एक ब्रांड वैल्यू होती है। सेलिब्रिटी के द्वारा विज्ञापित उपभोक्ता सामग्री लोग खरीदते हैं। वे क्या करते हैं? क्या पहनते हैं? उनके घर में कौन सा पंखा या वॉटर प्यूरीफायर है? इन सबकी देखा-देखी लोग शॉपिंग करते हैं, इनकी कहा-कही में आकर युवा अपनी ज़ुबां केसरिया करते हैं।
लेकिन, यहां हम जिन सेलिब्रिटीज़ की बात करने जा रहे हैं वे इनसे बिलकुल अलग हैं। ये खुद अपना गुणगान नहीं करते, किंतु उन पर किए गए शोध कार्यों ने मानव स्वास्थ्य, आनुवंशिक बीमारियों और वृद्धावस्था पर महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई है। हमारे शरीर में जीन्स कैसे काम करते हैं, उनके होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है? यह सब जानकारी हमें इन्हीं से पता चली है।
दरअसल, कुछ ऐसे प्रयोग भी होते हैं जो नैतिक रूप से इंसानों पर नहीं किए जा सकते। और, हमारे शरीर की जटिलता, लंबा जीवनकाल, बहुत बड़ा जीनोम आदि के कारण ये प्रयोग मनुष्य पर करना संभव भी नहीं है। इसलिए ऐसे महत्वपूर्ण प्रयोग इन मॉडल जीवों पर किए जाते हैं।
तो, मॉडल जीव उन्हें कहते हैं जिनका उपयोग आनुवंशिकी, विकास और अन्य जैविक प्रक्रियाओं को समझने के लिए किया जाता है। किसी भी जीव को मॉडल के रूप में चुनते समय शोधकर्ता उनकी स्थिरता, छोटा जीवन चक्र और जीनोम में संसाधनों की उपलब्धि जैसी बातों पर विचार करते हैं।
फलमक्खी (Drosophila melanogaster), गोलकृमि (Caenorhabditis elegans), घरेलू चूहा (Mus musculus), न्यूरोस्पोरा (Neurospora), एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमिफेशियंस (Agrobacterium tumefaciens), एसिटेबुलरिया (Acetabularia), हाइड्रा (hydra), बेकर्स यीस्ट (Saccharomyces cerevisiae), माउस ईयर क्रेस (Arabidopsis thaliana) ऐसे ही कुछ मॉडल जीव हैं जिन पर पिछले कई वर्षों से अनुसंधान किया जा रहा है।
हाइड्रा के बारे में
जीव विज्ञान में हाइड्रा को अमर कहा गया है यानी जो कभी नहीं मरता। इसे हाइड्रा नाम प्रसिद्ध जीव विज्ञानी कार्ल लीनियस ने दिया था। दरअसल यह नाम ग्रीक मायथॉलॉजी में वर्णित एक सर्प के रूप और गुणों पर आधार पर दिया था जिसके नौ सिर थे और एक सिर काटने पर उसके स्थान पर फिर दो सिर उग जाते थे। अर्थात उसमें पुनर्जनन की गज़ब की क्षमता थी। ऐसी ही क्षमता हाइड्रा में भी है, इसके भी दो टुकड़े कर दो तो दोनों टुकड़ों से नए हाइड्रा बन जाते हैं।
हाइड्रा मीठे पानी का एक अकशेरुकी मांसाहारी जीव है। यह एक छोटे ताड़ के पेड़ की तरह दिखता है। पूरा शरीर बेलनाकार नलीलुमा होता है। इसमें एक आधार डिस्क (पैर) होती है, जिससे यह किसी आधार पर चिपका रहता है। डिस्क में ग्रंथि कोशिकाएं होती हैं जो चिपचिपा पदार्थ स्रावित करती हैं। नलीनुमा शरीर के स्वतंत्र सिरे पर एक छिद्र मुंह होता है जो मुंह और गुदा दोनों का काम करता है। यह 4 से लेकर 12 तक संवेदी टेंटेकल्स से घिरा रहता है।
हाइड्रा एक डिप्लोब्लास्टिक जीव है अर्थात इसका शरीर दो परतों से बना होता है। बाहरी परत को एपिडर्मिस कहते हैं, और अंदर की परत गैस्ट्रोडर्मिस कहलाती है, यह पेट की आंतरिक सतह होती है। हाइड्रा का पूरा शरीर 50,000 से लेकर 10 लाख कोशिकाओं का बना होता है।
हाइड्रा में प्रजनन मुख्य रूप से मुकुलन द्वारा होता है। इस प्रक्रिया में हाइड्रा के शरीर पर एक कलिका बनती है और धीरे-धीरे यह कलिका बढ़ने के बाद अलग होकर एक नया हाइड्रा बनती है। इसे वर्धी प्रजनन कहते हैं। अलबत्ता, कतिपय परिस्थितियों में हाइड्रा में लैंगिक प्रजनन भी होता है।
हाइड्रा: एक मॉडल जीव
हाइड्रा के आणविक और कोशिकीय जीव विज्ञान पर कार्य करने वाली प्रोफेसर सेलिना जूलियानो का कहना है कि जहां तक हम जानते हैं यह जीव ना तो बूढ़ा होता है और ना ही मरता है। आप इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दीजिए और उन टुकडों से पूरा नया जीव बन जाता है। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि यदि हाइड्रा को एक-एक कोशिका में विभाजित कर दें, और उनको मिलाकर एक गेंद बना दें, तो फिर से एक नया हाइड्रा निकल आएगा। इसकी यही क्षमता उपचार और बुढ़ापे के अध्ययन के लिए इसे एक आदर्श मॉडल जीव बनाती है।
पेड़-पौधों में तो ऐसा होता ही रहता है। गुलाब की कलम से एक नया गुलाब का पौधा तैयार हो जाता है। हालांकि पेड़-पौधों में पाया जाने वाला पुनर्जनन का यह गुण हम मनुष्यों में नहीं पाया जाता। पर अगर आ जाए तो कितना बढ़िया होगा; कटे हुए हाथ की जगह नया हाथ, और दुर्घटना में खोई हुई टांग की जगह नई टांग!
यह कोई खाम-ख्याली नहीं है। प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों ने लीवर के टुकड़े से पूरा लीवर फिर से बना लिया है, त्वचा को भी उगा लिया है। बस कुछ और काम बाकी हैं जो हाइड्रा पर अनुसंधान की मदद से और उसकी पुनर्जनन क्षमता की बेहतर समझ से जल्दी ही पूरे हो जाएंगे।
जूलियानो द्वारा हाइड्रा की प्रत्येक प्रकार की कोशिका में अभिव्यक्त जीन्स को सटीक रूप से पहचान लिया गया है, उनके कार्यों के बारे में जानकारी जुटा ली गई है। आजकल इस जीन अभिव्यक्ति को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने के लिए औज़ार भी विकसित किए जा रहे हैं।
बुढ़ाने पर काम करने वाले डेनियल मार्टीनेज़ ने 1998 में एक्सपेरिमेंटल जेरेन्टोलॉजी नामक एक शोध पत्रिका में दावा किया था कि हाइड्रा जैविक रूप से अमर है। हाइड्रा की स्टेम कोशिकाओं में अनिश्चितकाल तक स्व-नवीनीकरण की क्षमता होती है। और लगातार स्व-नवीनीकरण करने में प्रतिलेखन (transcription) कारक “फोर्कहेड बॉक्स-ओ” यानी फॉक्स-ओ की भूमिका होती है।।
द्विपक्षीय सममिति (bilateral symmetry) वाले जीवों, जैसे फल मक्खियों और कृमि मॉडलों, में यदि इस प्रतिलेखन कारक को हटा दिया जाए तो उनका जीवनकाल काफी कम हो जाता है। हाइड्रा वल्गैरिस एक चक्रीय सममिति वाला जीव है। प्रयोग द्वारा देखा गया है कि जब फॉक्स-ओ के स्तर में कमी आती है तो हाइड्रा की कई प्रमुख विशेषताओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है लेकिन फिर भी उसकी मृत्यु नहीं होती।
हाइड्रा और जंतु जगत के हमारे अनेक नन्हे रिश्तेदार वैज्ञानिक अनुसंधान में बड़ा योगदान दे रहे हैं और जीवन के बारे में बड़े-बड़े सवालों के जवाब खोजने में हमारी मदद कर रहे हैं। इनकी बदौलत वह दिन दूर नहीं जब हम भी हाइड्रा की तरह हाथ पैर उगाने लगेंगे। और हो सकता है कि हमें बुढ़ापा न सताए! (स्रोत फीचर्स)