महासागर वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने में मदद करते हैं। कार्बन डाईऑक्साइड सोखने पर समुद्रों का पानी अधिक अम्लीय हो जाता है। एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि अगले 50 वर्षों में बढ़ती अम्लीयता के कारण महासागरों की कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की क्षमता कमज़ोर हो सकती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होगी।
इस संदर्भ में वनस्पति-प्लवकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। वनस्पति-प्लवक सूक्ष्म एक-कोशिकीय जीव हैं, जो समुद्र की सतह के पास तैरते रहते हैं। वे सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके कार्बन डाईऑक्साइड को जैविक पदार्थ में बदलते हैं। कार्बन डाईऑक्साइड जज़्ब करने की उनकी क्षमता का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे लगभग उतनी ही कार्बन डाईऑक्साइड सोखते हैं जितनी थलचर पेड़-पौधे सोखते हैं। 
और मरने के बाद वनस्पति-प्लवक समुद्र के पेंदे में बैठ जाते हैं, और इस तरह से कार्बन समुद्र की गहराई में हज़ारों वर्षों के लिए संग्रहित हो जाता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया पृथ्वी के जलवायु संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
लेकिन, कार्बन डाईऑक्साइड के घुलने से समुद्री जल अधिक अम्लीय हो जाता है। पिछले 170 वर्षों में, मानवीय गतिविधियों के कारण वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर 280 से बढ़कर 420ppm हो गया है, जिससे समुद्र की अम्लीयता लगभग 30 प्रतिशत बढ़ गई है। यह अम्लीयता विशेष रूप से बड़े वनस्पति-प्लवकों के विकास को बाधित कर सकती है, जिससे महासागरों की कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करने की क्षमता घट सकती है।
वनस्पति-प्लवकों पर बढ़ती अम्लीयता के प्रभाव को लेकर हुए पूर्व अध्ययनों के नतीजों में भिन्नता रही है। कुछ शोधों में पाया गया कि पोषक तत्वों से भरपूर तटीय क्षेत्रों में कुछ वनस्पति-प्लवकों की संख्या बढ़ सकती है, लेकिन ये शोध छोटे क्षेत्रों तक सीमित थे।
इस समस्या को हल करने के लिए, प्रिंसटन विश्वविद्यालय के फ्रांस्वा मोरेल और जियामेन विश्वविद्यालय के डालिन शी के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने एक बड़ा महासागर सर्वेक्षण किया। उन्होंने छह वर्षों तक प्रशांत महासागर और दक्षिणी चीन सागर में 45 जगहों से पानी के नमूने इकट्ठा किए। प्रयोगों में उन्होंने अलग-अलग स्थानों से प्राप्त नमूनों में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर कृत्रिम रूप से बढ़ाया ताकि यह देखा जा सके कि यदि वायुमंडलीय कार्बन डाईऑक्साइड 700 ppm तक पहुंचती है (जो 2075 से 2100 के बीच संभव है), तो वनस्पति-प्लवकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
वैज्ञानिकों ने दो प्रमुख प्रकार के वनस्पति-प्लवकों पर अध्ययन किया: छोटे बैक्टीरियल वनस्पति-प्लवक, जो पोषक तत्वों की कमी में भी जीवित रहने में सक्षम होते हैं; और बड़े केंद्रकधारी वनस्पति-प्लवक, जिन्हें अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है और वे पर्यावरण में बदलाव के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
अध्ययन के निष्कर्ष चौंकाने वाले थे। छोटे बैक्टीरियल वनस्पति-प्लवकों पर अम्लीयता का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन बड़े वनस्पति-प्लवकों की वृद्धि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मियों के दौरान 30 प्रतिशत तक घट गई, जबकि इस समय उनकी वृद्धि अधिक होनी चाहिए थी। ठंडे, पोषक तत्वों से भरपूर क्षेत्रों में यह प्रभाव थोड़ा कम था, क्योंकि गहरे समुद्र से पोषक तत्व ऊपर आते रहते हैं।
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि महासागर की अम्लीयता का वनस्पति-प्लवकों पर प्रभाव नाइट्रोजन की उपलब्धता से जुड़ा है। नाइट्रोजन वनस्पति-प्लवकों के विकास के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है। जिन क्षेत्रों में पहले से ही नाइट्रेट की मात्रा कम थी, वहां बढ़ती अम्लीयता ने समस्या को और बढ़ा दिया, जिससे बड़े वनस्पति-प्लवकों का विकास कठिन हो गया।
जब इन नमूनों में नाइट्रेट मिलाया गया, तो वनस्पति-प्लवकों की वृद्धि फिर से बढ़ गई। इसका मतलब है कि अम्लीयता किसी न किसी तरह वनस्पति-प्लवकों के लिए नाइट्रोजन को ग्रहण करना मुश्किल बना देती है।
यदि महासागर की अम्लीयता वनस्पति-प्लवकों को प्रभावित करती रही तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अध्ययन के अनुसार, अगले 50 वर्षों में वनस्पति-प्लवकों की धीमी वृद्धि के कारण महासागर हर साल लगभग 5 ट्रिलियन किलोग्राम कम कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करेंगे। इससे वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड का स्तर बढ़ेगा और जलवायु परिवर्तन की गति तेज़ हो सकती है।
समस्या को और बढ़ाने वाला एक अन्य कारक बढ़ता समुद्री तापमान है। गर्म सतही जल ठंडे, पोषक तत्वों से भरपूर गहरे जल के साथ मिश्रित नहीं हो पाता, जिससे सतह पर पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। उपग्रह डैटा से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय महासागरों में कम पोषक तत्वों वाले क्षेत्र तेज़ी से फैल रहे हैं। 1998 से 2006 के बीच, कम क्लोरोफिल (वनस्पति-प्लवकों की मात्रा का एक प्रमुख संकेतक) वाले क्षेत्र 15 प्रतिशत बढ़ गए। यदि अम्लीयता पोषक तत्व की कमी को और बढ़ाती है तो महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र पर ‘दोहरा आघात’ होगा।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि वनस्पति-प्लवकों की घटती संख्या निश्चित रूप से महासागर की कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करने की क्षमता को कम करेगी। संभव है कि ठंडे क्षेत्रों, जहां पोषक तत्व अधिक उपलब्ध हैं, में वनस्पति-प्लवक तेज़ी से बढ़ें और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के नुकसान की भरपाई कर दें। लेकिन, समुद्र वैज्ञानिक मैट चर्च कहते हैं कि समग्र रूप से पृथ्वी के कार्बन चक्र पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना बहुत कम है।
वैज्ञानिक और अधिक शोध की ज़रूरत पर ज़ोर दे रहे हैं। बहरहाल, इतना स्पष्ट है कि हम जितनी अधिक कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में छोड़ेंगे, महासागरों का संतुलन उतना ही डगमगाएगा। इसलिए कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को कम करना अब पहले से कहीं अधिक ज़रूरी हो गया है। (स्रोत फीचर्स)