माइक्रोप्लास्टिक हर जगह पहुंच गया है - गहरे समुद्र से लेकर मानव मस्तिष्क तक। प्लास्टिक के 5 मिलीमीटर से छोटे-छोटे टुकड़ों के लिए माइक्रोप्लास्टिक शब्द वैज्ञानिकों ने 2000 के दशक में गढ़ा था, लेकिन इस समस्या ने अपने पांव पसारना उसके बहुत पहले ही शुरू कर दिया था। साइंस ऑफ दी टोटल एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि कुछ कीटों की इल्लियां शिकारियों से बचाने वाले अपने खोल में 1970 के दशक से ही प्लास्टिक शामिल करने लगी थीं।
दरअसल वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि जीव-जंतुओं के दैनिक जीवन में मानव अपशिष्ट कैसे शामिल हो रहे हैं। कई अध्ययनों की अपनी इस शृंखला में वे पहले कई खुलासे कर चुके हैं। और अपने इस हालिया अध्ययन में उन्होंने ने कैडिसफ्लाय (ट्राइकोप्टेरा) (Trichoptera insects) की इल्ली के बारे में बताया है। 
दरअसल, कैडिसफ्लाय पंखदार कीटों का एक समूह है, जिसकी इल्लियां तो पानी में पलती हैं लेकिन वयस्क कीट भूमि (थल) पर रहते हैं। जब ये इल्लियां पानी में रहती हैं तो वे कंकड़-पत्थर या पत्तियों जैसी सामग्री से अपना सुरक्षा कवच बनाती हैं। वयस्क होने पर यह कवच पानी में ही छोड़कर वयस्क कीट भूमि पर आ जाते हैं।
शोधकर्ताओं ने नेदरलैंड के एक प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय में दशकों की अवधि में सहेजे गए 549 खोलों के संग्रह का विश्लेषण किया। 1986 के कुछ कवचों में उपस्थित चमकीले नीले कणों ने शोधकर्ताओं का ध्यान खींचा। फिर, 1971 के एक कवच में उन्हें पीले रंग के कण मिले। आगे अध्ययन में उन्हें कवच में टाइटेनियम, जस्ता और सीसा जैसे सामान्य प्लास्टिक योजक होने के प्रमाण मिले।
कवचों में प्लास्टिक की इस उपस्थिति पर वैज्ञानिकों का कहना है कि रंगीन माइक्रोप्लास्टिक इल्ली को शिकारियों की नज़रों में अधिक दिखने योग्य बना देगा, जिससे वे मछलियों, पक्षियों और अपने अन्य शिकारियों के कारण खतरे में पड़ सकती हैं। साथ ही यदि कैडिसफ्लाय पिछले 50 वर्षों से माइक्रोप्लास्टिक से प्रभावित है तो निश्चित रूप से मीठे पानी का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होगा। (स्रोत फीचर्स)