हर साल देश में 260 लाख जीवित जन्मों में से 35 लाख समय से पूर्व पैदा होते हैं। समय से पूर्व पैदा होने का मतलब यह है कि ये बच्चे गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने के पहले ही पैदा हो जाते हैं जबकि सामान्य गर्भावस्था 40 सप्ताह की मानी जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यदि बच्चे का जन्म मां के अंतिम मासिक चक्र से 259 दिन यानी 37 सप्ताह से पहले हो तो वह प्रसव समयपूर्व माना जाएगा।
समयपूर्व जन्मे बच्चे सामान्य से कम वज़न के और कम कद-काठी के होते हैं। ऐसे बच्चे कई अन्य जोखिमों से भी घिरे रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक देश में जन्म लेने वाले 35 लाख समयपूर्व बच्चों में से 3 लाख से ज़्यादा बच्चों की मृत्यु हो जाती है। ऐसे बच्चों के तंत्रिका तंत्र का विकास भी बाधित हो सकता है जिसकी वजह से वे कई दिमागी समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं। इन बच्चों का कुदरती प्रतिरक्षा तंत्र भी भलीभांति विकसित नहीं हो पाता और ये संक्रामक रोगों की चपेट में आते रहते हैं।

तो सवाल यह है कि समयपूर्व प्रसव को कैसे रोका जाए। इस सवाल की छानबीन करते हुए इस बात पर काफी अनुसंधान हुआ है कि गर्भस्थ शिशु को कैसे संकेत मिलता है कि गर्भावस्था पूरी हुई और अब प्रसव का समय आ गया है। टेक्सास विश्वविद्यालय के रामकुमार मेनन ने इस विषय का अध्ययन करते हुए बताया है कि समय का अंदाज़ा दरअसल भ्रूण को घेरने वाली झिल्लियां देती हैं जो अलार्म घड़ी की तरह काम करती हैं। मेनन और उनकी टीम का मत है कि भ्रूण के आसपास की झिल्लियों से बनी थैली धीरे-धीरे बुढ़ाती है। भ्रूण के परिपक्व होने तक यह थैली इतनी बुढ़ा जाती है कि उसमें शोथ (सूजन) पैदा हो जाती है और वह स्त्री के गर्भाशय को संकेत देने लगती है। सूजन से जुड़े रसायन काफी उथल-पुथल मचाते हैं - वे हारमोनों की क्रिया को बदल डालते हैं और ये हारमोन गर्भावस्था को जारी रखने का काम नहीं कर पाते और संकुचन शु डिग्री हो जाते हैं।
इस विचार को कुछ हद तक प्रयोगों का प्रमाण मिला है। जैसे यह देखा गया है कि गर्भावस्था का पूरा समय लेकर पैदा होने के बाद स्त्री के गर्भाशय की गर्भ-थैली में बुढ़ाने के कई लक्षण होते हैं जबकि समयपूर्व प्रसव के बाद उस थैली में ऐसे लक्षण देखने को नहीं मिलते। चूहों के अध्ययन से यह भी पता चला है कि गर्भावस्था पूरी होने तक सूजन बढ़ने लगती है।

पहले भी इस संदर्भ में कई सिद्धांत प्रस्तुत किए जा चुके हैं। जैसे एक सिद्धांत के अनुसार गर्भावस्था पूरी होने पर एक हारमोन (सीआरएच) का स्तर बढ़ने लगता है और यह अन्य हारमोन्स को प्रसव सम्बंधी निर्देश देकर संकुचन शु डिग्री करवाता है और गर्भाशय के मुख को फैलाता है।
मेनन की टीम का विचार है कि यदि हम झिल्लियों की क्रिया को गहराई से समझ लें, तो प्रसव के समय को निर्धारित करना संभव हो जाएगा। जैसे उन्होंने एक प्रोटीन की पहचान की है जो गर्भ-थैली के बुढ़ाने में भूमिका निभाता है। उनको लगता है कि इस प्रोटीन को बाधित करके प्रसव के समय को आगे बढ़ाया जा सकता है। मगर अन्य वैज्ञानिक अभी इसे लेकर इतने आश्वस्त नहीं हैं क्योंकि यह प्रोटीन शरीर में और कई भूमिकाएं निभाता है। यदि इसे बाधित किया गया तो हो सकता है कि अन्य गंभीर साइड प्रभाव हों। बहरहाल, मामले को और समझने के प्रयास जारी हैं। (स्रोत फीचर्स)