नवनीत कुमार गुप्ता


हमारे देश में मौसम के पूर्वानुमान में काफी सफलता प्राप्त कर ली गई है। इसमें वैज्ञानिकों की प्रतिभा और आधुनिक प्रौद्योगिकियों का योगदान है। लेकिन एक समय ऐसा था जब हमारे देश में मौसम पूर्वानुमान के लिए पर्याप्त उपकरण विकसित नहीं हुए थे। ऐसे में एक महिला वैज्ञानिक ने मौसम सम्बंधी उपकरणों का विकास कर मौसम विज्ञान को नई दिशा प्रदान की। यह महिला वैज्ञानिक थी अन्ना मोदाइल मणी। जिन्हें अन्ना मणी के नाम से जाना जाता है।
अन्ना मणी एक प्रसिद्ध भारतीय भौतिक विज्ञानी और मौसम विज्ञानी थीं। अन्ना मणी का जन्म 23 अगस्त 1918 को केरल के पीरमेडु में हुआ था। यह क्षेत्र उस समय के त्रावणकोर राज्य का हिस्सा था। उनके पिता सिविल इंजीनियर थे। वे अपने माता-पिता की आठ संतानों में से सातवीं संतान थी। उस समय के रिवाज़ के अनुसार उनकी बहनों की शादी तो कम उम्र में ही कर दी गई थी लेकिन अन्ना मणी की पढ़ाई की चाह ने उन्हें वैवाहिक जीवन से दूर रखा।

बचपन से उन्हें पढ़ने में गहरी रुचि थी। आरंभ में वे चिकित्सा के क्षेत्र में जाना चाहती थी लेकिन उन्हें भौतिकी विषय से अधिक लगाव था। यही कारण रहा कि उन्होंने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से भौतिकी और रसायन विज्ञान में स्नातक (ऑनर्स) की उपाधि प्राप्त की। भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलु डिग्री में अध्ययन के लिए उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की गई। यहां उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी. वी. रमन के मार्गदर्शन में हीरे और माणिक के प्रकाशीय गुणधर्मों पर शोध कार्य किया। शोध कार्य के लिए उन्हें घंटों प्रयोगशाला में कार्य करना होता था और ये प्रयोग देर रात तक चलते रहते थे। 1942 से 1945 के दौरान उन्होंने हीरे और माणिक की दीप्ति पर पांच शोध पत्र लिखे।
अन्ना मणी ने मद्रास विश्वविद्यालय को अपना शोध प्रबंध प्रस्तुत किया लेकिन भौतिकी में स्नातकोत्तर की उपाधि नहीं होने के कारण उन्हें पीएच.डी. की उपाधि प्रदान नहीं की गई। उन दिनों भारतीय विज्ञान संस्थान के शोध छात्रों को औपचारिक रूप से उपाधियां मद्रास विश्वविद्यालय ही प्रदान करता था। हालांकि पीएच.डी. उपाधि न मिलने का उनके शोध कार्य की गुणवत्ता से कोई वास्ता नहीं था।
रामन की प्रयोगशाला में तीन साल कार्य करने के बाद, वे भौतिकी में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चली गईं। लेकिन वहां उन्हें मौसम विज्ञान सम्बंधी यंत्रों के विकास के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की गई। अत: उन्होंने लंदन के इम्पीरियल कॉलेज में मौसम वैज्ञानिक उपकरणों का अध्ययन किया। इस दौरान उन्हें कई वेधशालाओं और जलवायु सम्बंधी यंत्रों के निर्माताओं से संपर्क का अवसर मिला। कुछ समय के लिए उन्होंने टेडिंग्टन स्थित राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला में विभिन्न जलवायु मापदंडों के मानकों एवं मानकीकरण सम्बंधी कार्य भी किए।

सन 1948 में भारत लौटने पर उन्होंने पुणे स्थित भारतीय मौसम विभाग में मौसम वैज्ञानिक के रूप में कार्य आरंभ किया। सन 1953 में अन्ना मणी विभागाध्यक्ष बनीं। यहां अन्ना मणी ने यंत्रों के डिज़ाइन, निर्माण, अंशांकन तथा स्थापना और प्रेक्षण लेने के लिए पर्याप्त लोगों को प्रशिक्षित कर निपुण बनाया। उन्होंने लगभग 100 अलग-अलग यंत्रों की विस्तृृत रूपरेखा, तकनीकी मैनुअल और प्रमाणीकरण विधियों का विकास किया। उन्होंने भारतीय मानक संस्थान को विभिन्न मौसम यंत्रों के भारतीय मानक प्रकाशित करने में सहायता की। भारत को मौसम वैज्ञानिक यंत्रों में आत्मनिर्भर बनाने में अन्ना मणी का महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने यंत्रों के विकास के बाद सौर ऊर्जा की ओर ध्यान लगाया। अन्ना मणी ने विभिन्न सौर विकिरण उपकरणों की डिज़ाइन विकसित करने और देश में ही उनका निर्माण करने का बीड़ा उठाया। अन्ना मणी ने इन यंत्रों के अंशांकन और मानकीकरण को विश्व स्तर का बनाया। जिसके परिणामस्वरूप पुणे स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के यंत्र विभाग को एशिया के क्षेत्रीय केंद्र का दर्जा दिया गया।
1960 के आसपास अन्ना मणी ने वायुमंडलीय ओज़ोन का अध्ययन आरंभ किया। उस समय तक मानवीय गतिविधियों द्वारा वायुमंडलीय ओज़ोन के क्षरण से होने वाले खतरों को पहचाना भी नहीं गया था। अन्ना मणी द्वारा विकसित ओज़ोनसोंड के माध्यम से भारत वायुमंडलीय ओज़ोन सम्बंधी आंकड़ों को एकत्र कर सकता था। विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने ओज़ोन अध्ययन सम्बंधी अन्ना मणी के विशेष योगदान को पहचान कर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ओज़ोन आयोग का सदस्य बनाया। सौर विकिरण, ओज़ोन और पवन ऊर्जा आदि पर उनके अनेक शोध पत्र प्रकाशित हुए। उन्होंने मौसम विज्ञान से सम्बंधित उपकरणों पर भी अनेक शोध पत्र लिखे।

उन्होंने सौर एवं पवन ऊर्जा पर महत्वपूर्ण प्रकाशन किए। उनके प्रमुख प्रकाशनों में विंड एनर्जी: रिसोर्स सर्वे इन इंडिया, सोलर रेडिएशन ओवर इंडिया और हैंड बुक फॉर सोलर रेडिशन डैटा फॉर इंडिया हैं।
सन 1976 में वे भारतीय मौसम विभाग के उपमहानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुईं। अन्ना मणी गांधीजी के कार्यों से प्रभावित थीं। उन्होंने पूरा जीवन सादगी में बिताया। अन्ना मणी का जीवन प्रेरणा का प्रतीक है। अन्ना मणी ने अपने कार्यों से सिद्ध किया कि महिलाएं भी वैज्ञानिक अन्वेषण कर सकती हैं। उस समय एक महिला को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था उन्होंने उन सबका सामना किया और वह राजनीति से भी दूर रहीं। सन 1994 में वे स्ट्रोक से पीड़ित हुईं और 16 अगस्त 2001 को तिरूवअनन्तपुरम में उनका निधन हुआ। (स्रोत फीचर्स)