पहले तो हम समझते थे कि हमारी जिव्हा कुल मिलाकर चार प्राथमिक ज़ायके चख सकती है - खट्टा, मीठा, नमकीन और कड़वा। फिर सात साल पहले इस सूची में एक और स्वाद जुड़ गया - ऊमामी। यह उस चीज़ का स्वाद है जिसके लिए मैगी नूडल्स पर प्रतिबंध लगा था - अजीनो मोटो यानी मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी)। और अब सूची में एक और नाम जुड़ा है - स्टार्ची यानी मंडनुमा स्वाद।
दरअसल, ओरेगन स्टेट विश्वविद्यालय के जुयून लिम को लगता था कि इन 4-5 ज़ायकों में हमारे भोजन का एक प्रमुख घटक तो नदारद है। हर संस्कृति में जटिल कार्बोहाइड्रेट्स का कोई न कोई प्रमुख स्रोत होता ही है। जटिल कार्बोहाइड्रेट से मतलब है शर्करा की इकाइयों से बने बहुलक। जैसे स्टार्च यानी मंड हम बड़ी मात्रा में खाते हैं। यह हमारे भोजन में ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत है। अलबत्ता, भोजन विशेषज्ञ मानते आए थे कि इनका अपना कोई स्वाद नहीं होता। हमारी लार में उपस्थित एंज़ाइम्स स्टार्च को विघटित करके शर्कराओं में बदल देते हैं और हमारी जिव्हा इन्हीं शर्कराओं के मीठे स्वाद से स्टार्च की उपस्थिति को भांप लेती है।

इस बात की पड़ताल के लिए लिम की टीम ने कई वालंटियर्स को तरह-तरह के स्टार्च के घोल पिलाए। पता चला कि वालंटियर्स यह बता पाए कि किस घोल में शर्करा की लंबी श्रृंखला वाला कार्बोहाइड्रेट है किसमें छोटी श्रृंखला वाला। वालंटियर्स इस स्वाद को मंड जैसा बताते थे। एशियाई लोग इसे चावल जैसा कहते थे और कॉकेशियन लोगों ने इसका वर्णन पास्तानुमा कहकर दिया।
वालंटियर्स के साथ एक प्रयोग और किया गया। उन्हें एक ऐसा पदार्थ खिला दिया गया जो उन एंज़ाइम्स की क्रिया को रोक देता है जो स्टार्च को मीठी शर्कराओं में बदलता है। ऐसी स्थिति में वे सिर्फ लंबी श्रृंखला वाले कार्बोहाइड्रेट घोल का स्वाद पता करने में असमर्थ रहे। यानी चावलनुमा स्वाद छोटी श्रृंखला वाले स्टार्च से पता चलता है।
इन प्रयोगों से इतना तो स्पष्ट है कि हमारी स्वादेंद्रिय कहीं ज़्यादा जटिल है और चार-पांच स्वादों तक सीमित नहीं है। अब मोनेल केमिकल सेंसेस सेंटर के माइकल टॉरडॉफ यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या मानव जिव्हा कैल्शियम का स्वाद भांप सकती है। इसके अलावा कार्बोनेटेड पेय पदार्थों, धातुओं (कसैला स्वाद), अमीनो अम्लों वगैरह के स्वादों की संवेदना पर भी प्रयोग जारी हैं। इस बात के भी कुछ प्रमाण मिले हैं कि हम वसाओं के स्वाद भी चख सकते हैं।

मगर किसी स्वाद को प्राथमिक स्वादों की सूची में शामिल करने से पहले कुछ शर्तें पूरी होनी चाहिए। सबसे पहले तो कोई भी स्वाद स्पष्ट रूप से पहचान में आना चाहिए। फिर जिव्हा पर उसके लिए स्वतंत्र संवेदना ग्राही होने चाहिए और उसकी वजह से कोई उपयोगी शरीर क्रियात्मक प्रतिक्रिया भी शु डिग्री होनी चाहिए। देखा जाए, तो स्टार्च अभी भी इन सारी शर्तों को पूरा नहीं करता। स्टार्च का स्वाद शरीर क्रिया की दृष्टि से उपयोगी तो है किंतु लिम व उनकी टीम को जिव्हा पर स्टार्ची स्वाद के संवेदना ग्राही अभी तक नहीं मिले हैं। (स्रोत फीचर्स)