भूमध्य सागर क्षेत्र में एक द्वीप राष्ट्र है माल्टा। हर वसंत में लाखों पक्षी अपनी लंबी प्रवासी यात्रा में इस द्वीप पर पड़ाव डालते हैं। उनका यह पड़ाव सहारा रेगिस्तान को पार करने के बाद आता है। यहां से उन्हें कुछ दिन रुककर उड़ जाना है। मगर सौभाग्यशाली पक्षी ही आगे की यात्रा जारी रख पाते हैं, बड़ी संख्या में उन्हें मार गिराया जाता है - भूसा भरकर रखने के लिए।
वैसे तो वसंत में पूरे युरोपीय संघ में शूटिंग पर प्रतिबंध लगा रहता है किंतु माल्टा इसका अपवाद है। यहां शिकारियोें को चंद हज़ार फाख्ता और बटेर पक्षियों को शूट करने की अनुमति है। इस वर्ष तो सिर्फ बटेर को मारने की अनुमति थी। किंतु वास्तव में ये शिकारी तमाम पक्षियों को मारते हैं।

माल्टा के अलावा जिन जगहों पर प्रतिबंध लगा होता है वहां भी प्रतिबंध की परवाह न करते हुए परिंदों का शिकार किया जाता है। बर्डलाइफ इंटरनेशनल नामक संस्था का अनुमान है कि भूमध्य सागर क्षेत्र में हर वर्ष 2.5 करोड़ पक्षी मारे जाते हैं। इनमें से 80 लाख की जान तो सिर्फ चार देशों में जाती है: सायप्रस, मिस्र, लेबनान और सीरिया। मगर माल्टा में स्थिति सबसे गंभीर है - यहां प्रति वर्ग किलोमीटर प्रति वर्ष 7200 पक्षी मारे जाने का अनुमान है।

दिक्कत यह है कि पक्षियों का शिकार करना माल्टावासी अपनी संस्कृति का अभिन्न अंग मानते हैं जैसे भारत में कुछ लोगों को लगता है कि जल्लीकट्टू उनकी संस्कृति का अंग है। जिस तरह से जल्लीकट्टू के समर्थक कोई बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करते, उसी तरह माल्टावासी हर वसंत में पक्षियों को मारने के मामले में बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करते। और इन पक्षियों का कसूर मात्र इतना है कि माल्टा इनके प्रवास मार्ग पर स्थित है। (स्रोत फीचर्स)