भारत डोगरा

किसी का जीवन बचाने के लिए प्रयास को सर्वोत्तम प्रयास माना गया है व तिस पर किसी बच्चे या शिशु का जीवन बचाना तो सबसे अमूल्य कार्य है। इस संदर्भ में अति महत्वपूर्ण जानकारी हमारे सामने है कि निकट भविष्य में भारत में लाखों बच्चों का जीवन बचाने की संभावना हमारे सामने है।
इस बात का आधार यह है कि आज भारत में एक वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में शिशु मृत्यु दर 41 प्रति हज़ार है। पर भारत के एक राज्य केरल में यह मात्र 6 प्रति हज़ार तक सिमट गई है। अब यदि अपने ही एक राज्य के बराबर पूरे देश की यह शिशु मृत्यु कम हो जाए तो इसका अर्थ राष्ट्रीय स्तर पर यह होगा कि एक वर्ष से कम आयु वर्ग में सालाना लगभग सात लाख मौतों को रोका जा सकेगा।
यह तो केवल एक वर्ष तक की आयु के बच्चों तक की सीमित संभावना है। यदि सब बच्चों को देखा जाए तो इससे भी कहीं अधिक बच्चों के जीवन को बचाने की संभावना है।
ये आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के नवीनतम दौर पर आधारित हैं। सर्वेक्षण का नवीनतम दौर वर्ष 2015-16 में हुआ व इसके आंकड़े अभी हाल ही में उपलब्ध हुए।
हालांकि केरल के कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस राज्य में शिशु मृत्यु दर में जितनी तेज़ गिरावट इस सर्वेक्षण के आंकड़ों ने दर्शाई है संभवत: वास्तविक गिरावट की दर उससे कुछ कम है। यदि इस आलोचना को स्वीकार कर भी लिया जाए व केरल में शिशु मृत्यु दर 6 के बजाय 8 या इसके आसपास मान ली जाए तो भी आंकड़े यही दर्शाते हैं कि केरल के बराबर शिशु व बाल मृत्यु दर यदि राष्ट्रीय स्तर पर कर दी जाए तो इस तरह प्रति वर्ष लाखों बच्चों का जीवन बच सकता है।
कुछ राज्यों में शिशु मृत्यु दर (एक वर्ष से कम आयु के 1000 में से बच्चों की मृत्यु दर - इनफैंट मॉर्टेलिटी रेट - आई.एम.आर.) बहुत अधिक है। छत्तीसगढ़ में यह 54 है तो बिहार व असम में 48 है। इन राज्यों में शिशु मृत्यु दर को कम करने की संभावना और भी अधिक है।

शिशु मृत्यु दर कम करने में सबसे बड़ी चुनौती पहले 28 दिन की होती है। एक वर्ष से कम आयु में जितनी मौतें होती हैं, उनमें से 60 प्रतिशत मौतें पहले 28 दिनों यानी चार सप्ताहों में हो जाती हैं। अत: एक बड़ी चुनौती पहले 28 दिनों की मौतों को कम करने की है जिसे नियो नेटल मॉर्टेलिटी कहा जाता है। इसके लिए अस्पतालों में उपयुक्त व्यवस्थाएं करना ज़रूरी है जिसमें जिन शिशुओं को जन्म के बाद जीवन-रक्षा के लिए विशेष सहायता की ज़रूरत है उन्हें वह मिल सके। यह सहायता ग्रामीण सहित सभी सरकारी अस्पतालों में मिलनी चाहिए क्योंकि कम आयु वर्ग के लिए तो यही जीवन-रक्षा की व्यवस्था हो सकेगी।
हाल के वर्षों में भारत सरकार ने शिशु व बाल मृत्यु कम करने के कई प्रयास किए हैं। इनमें से एक है नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम। इसके अन्तर्गत नर्सों के लिए जीवन-रक्षा के महत्वपूर्ण प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है।

जहां इस तरह के विशिष्ट उद्देश्यों वाले कार्यक्रम अपने स्तर पर महत्वपूर्ण हैं, वहीं इसके साथ यह कहना भी ज़रूरी है कि स्वास्थ्य व पोषण में समग्र स्तर पर भी महत्वपूर्ण सुधार हों। यदि स्वास्थ्य सुविधाएं समग्र स्तर पर बेहतर नहीं बनेगी व पोषण में महत्वपूर्ण सुधार नहीं होगा, तो मूलत: बच्चे संकट से घिरे रहेंगे व एक विशेष अवधि में जीवन-रक्षा हो भी गई तो आगे के लिए खतरा बना रहेगा। ज़रूरत इस बात की भी है कि सभी बच्चों के स्वास्थ्य व जीवन-रक्षा पर पहले से बेहतर ध्यान दिया जाए। इस बारे में ज़रूरी जानकारियां प्राय: पांच वर्ष की आयु तक ही उपलब्ध हैं। यह सच है कि 28 दिन, 1 वर्ष और 5 वर्ष तक का अपना विशेष महत्व है, पर इसके साथ किशोरों सहित सभी बच्चों की जीवन रक्षा के व्यापक प्रयास भी ज़रूरी हैं। (स्रोत फीचर्स)