डॉ. विजय कुमार उपाध्याय

दूरबीनों की सहायता से लिए गए सूर्य के चित्रों से पता चलता है कि सूर्य की सतह पर कुछ काले-काले धब्बे (सन स्पॉट) मौजूद हैं। इन धब्बों का व्यास 750 किलोमीटर से 75,000 किलोमीटर तक देखा गया है। ये धब्बे प्राय: युग्मों या समूहों में पाए जाते हैं। छोटे धब्बों का जीवन काल कुछ दिनों का रहता है, जबकि बड़े धब्बों का जीवन काल कई सप्ताहों का हो सकता है। सूर्य के घूर्णन के साथ-साथ ये धब्बे स्थानांतरित होते रहते हैं।
एक के बाद एक लिए गए अनेक चित्रों के अध्ययन से पता चलता है कि ये धब्बे सूर्य की सतह पर उपस्थित पदार्थ की ‘क्वथन गति (ब्वायलिंग मोशन)’ के परिणाम हैं। इनके तापमान सूर्य के दीप्त क्षेत्र की गैस के तापमान से एक से डेढ़ हज़ार डिग्री सेल्सियस तक कम होते हैं। इसी के कारण ये काले दिखाई पड़ते हैं।
ये सन स्पॉट सूर्य में ऊर्जा रूपांतरण के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। सौर धब्बों के ऊपर वर्णमंडल में आयनीकृत कैल्शियम तथा हाइड्रोजन के बादल पाए जाते हैं। ये बादल आसपास की गैस की अपेक्षा अधिक तापमान पर रहते हैं। ये ऊंचे तापमान वाले बादल प्राय: दीप्ति मंडल पर सौर धब्बों के दिखने से पूर्व ही निर्मित हो जाते हैं तथा उनसे अधिक समय तक बने भी रहते हैं। धब्बों से ऊपर स्थित वर्ण मंडल का जो चित्र लिया गया है उसके अध्ययन से पता चलता है कि उसमें कुछ भंवर मौजूद हैं। युग्म सौर धब्बों के ऊपर वर्ण मंडलीय पैटर्न में ऐसा मालूम पड़ता है मानो नाल चुम्बक के ध्रुवों के चारों ओर चुम्बकीय बल रेखाएं हों।
सौर धब्बों के वर्णक्रम में अवशोषण रेखाएं ध्रुवित तथा कई घटकों में विघटित पाई जाती है। इन अवशोषण रेखाओं के आधार पर सौर धब्बों में चुम्बकीय बल क्षेत्रों की शक्ति का मान तथा उनकी दिशा का अनुमान लगाया जा सकता है। सौर धब्बों के चुम्बकीय बल क्षेत्र की शक्ति पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से लगभग आठ हज़ार गुना अधिक है।

खगोल वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चला है कि सूर्य के किसी भी ध्रुव से 45 डिग्री अक्षांश के अंदर कोई भी सौर धब्बा नहीं पाया जाता है। सौर धब्बों की संख्या औसत रूप से प्रति 11.3 वर्षों के अंतराल पर अधिकतम पाई जाती है। जब सौर धब्बों की संख्या कम होती है तो धब्बे आकार में छोटे होते हैं तथा सूर्य की विषुवत रेखा से दूर स्थित होते हैं। इसके विपरीत जब सौर धब्बों की संख्या बढ़ती है तो सौर धब्बों का आकार भी बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में सौर धब्बे सूर्य की विषुवत रेखा के निकट स्थित होते हैं। सौर धब्बों की संख्या जब अधिकतम होती है तो ये धब्बे सौर विषुवत रेखा से 10 डिग्री अक्षांश के अन्दर स्थित होते हैं।
उपर्युक्त वर्ण मंडल में आयनीकृत कैल्शियम एवं हाइड्रोजन के वायुमंडल में समय-समय पर लपटें उठती हैं तथा इसी के साथ सौर धब्बे प्रकट होते हैं। ये धब्बे अकस्मात तीव्र हो उठते हैं, परंतु कुछ ही मिनट बाद धुंधले तथा सामान्य हो जाते हैं। कभी-कभी गैस की विशाल ज्वालाएं प्रकट होती हैं जो सूर्य की सतह से हज़ारों किलोमीटर की ऊंचाई तक उठती हैं तथा कुछ समय बाद सूर्य की सतह पर सिमट जाती हैं।

पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय सूर्य का बाहरी वायुमंडल अच्छी तरह देखा जाता सकता है। सूर्य के बाहरी वायुमंडल (जिसे किरीट कहा जाता है) का कुछ अंश उड़कर सूर्य के बाहर पलायन कर जाता है। इसी के कारण सौर आंधियां उठती हैं। ये आंधियां मुख्यत: प्रोटॉन तथा इलेक्ट्रॉन जैसे आवेशयुक्त कणों से बनती हैं। शेष कण पृथ्वी की ‘वैन एलेन पट्टी’ में फंस जाते हैं। उल्लेखनीय है कि वैन एलेन पट्टी की खोज 1958 में वैन एलेन नामक वैज्ञानिक ने की थी। उन्होंने पता लगाया था कि पृथ्वी की चुम्बकीय विषुवत रेखा के चारों ओर कुछ ऊंचाई पर छल्लेदार आकृति की एक विकिरण पट्टी मौजूद है। इसे ‘वैन एलेन पट्टी’ कहते हैं।
सूर्य से निकलने वाले आवेशयुक्त कण जब पृथ्वी पर उपस्थित ऑक्सीजन एवं नाइट्रोजन से टकराते हैं तो ध्रुवीय ज्योति दिखाई पड़ती है तथा चुम्बकीय आंधियां उत्पन्न होती हैं। चुम्बकीय आंधियों के दौरान पृथ्वी पर लघु तरंग लंबाई का रेडियो संचार लुप्त हो जाता है। इसका कारण यह है कि ज्वाला के साथ ही सूर्य से पराबैंैगनी प्रकाश का प्रचण्ड प्रवाह निकल कर वायुमंडल के ऊपरी भागों की परतों से टकराता है तथा बड़ी संख्या में वायु के अणुओं को आयनित कर देता है। इसी कारण से चुम्बकीय आंधियों के दौरान लघु तरंग लंबाई का रेडियो संचार बंद हो जाता है।
अब प्रश्न उठता है कि सौर धब्बे युग्मों में क्यों दिखते हैं? फिर किसी युग्म के दो धब्बों में विपरीत ध्रुवीयता क्यों पाई जाती है? कुछ समय पूर्व हेल नामक वैज्ञानिक ने सुझाव दिया कि नाल चुम्बक के क्षेत्र की तरह का क्षेत्र नीचे गहराई से ऊपर उठकर युग्म के दोनों धब्बों में समाप्त होता है। एक अन्य मत के अनुसार सूर्य की सतह के नीचे वलयाकार क्षेत्र उसके अक्ष को घेरे हुए है। विद्युत सुचालक पर्यावरण में ये क्षेत्र उत्प्लावित होकर ऊपर को उठते हैं तथा सौर धब्बों के रूप में दिखाई पड़ते हैं। एक वैज्ञानिक की धारणा थी कि सौर धब्बे सूर्य के आंतरिक चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाओं के साथ-साथ चलने वाली चुम्बकीय तरंगों से सम्बंधित हैं जिनके कारण धब्बे ऊपर उठते हैं।         

सौर धब्बों की संख्या में वृद्धि होने पर पृथ्वी पर उसका सीधा प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों के मतानुसार जब सूर्य पर धब्बे उभरते हैं तो कई प्रकार के परिवर्तन आते हैं। सूर्य की सतह पर भयंकर आंधी तथा तूफान उठते हैं तथा लाखों किलोमीटर के दायरे में भयानक लपटें उठती हैं। इसके साथ ही विद्युत चुम्बकीय तरंगों का निर्माण इतनी तीव्र गति से होता है कि उससे सम्पूर्ण सौर मण्डल प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। पृथ्वी भी सौर मण्डल का एक सदस्य है। उसकी सामान्य स्थिति में कई तरह के परिवर्तन आते हैं तथा कई प्रकार के उत्पात खड़े होने लगते हैं। ऐसे उत्पातों में शामिल हैं - भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, हिमपात, आंधी, तूफान, चक्रवात तथा वायु भार में वृद्धि इत्यादि।
प्रसिद्ध रूसी विद्वान फिज़ोरवस्की ने विगत चार शताब्दियों के इतिहास तथा सूर्य की प्राचीन गतिविधियों का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला है कि कई महामारियों तथा उपद्रवों का सौर धब्बों से बहुत ही गहरा सम्बंध रहता आया है। सौर धब्बों में वृद्धि के दौरान चुम्बकीय आंधियों के निर्माण की वजह से रेडियो संचार बुरी तरह बाधित होता है तथा इससे मौसम पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

इसी प्रकार प्रसिद्ध वैज्ञानिक माइकल्सन का विचार है कि सूर्य में धब्बों की संख्या के बढ़ने-घटने से पृथ्वी फूलती तथा पिचकती है जिसकी वजह से भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट और अन्य कई प्रकार के उपद्रवों की संभावना बढ़ जाती है। डॉ. ऐंड्रयू ई. डगलस नामक वैज्ञानिक के अनुसार सौर धब्बों में वृद्धि के कारण पृथ्वी के जीव-जंतु भी प्रभावित होते हैं। उन्होंने वृक्षों का अध्ययन कर बताया है कि प्रत्येक 11 वर्षों के अंतराल पर निर्मित वार्षिक वलय मोटे होते हैं। ऐसा इस कारण से होता है कि उस काल के दौरान सौर धब्बों के हानिकारक विकिरण से बचने के लिए प्रकृति उस वर्ष वृक्षों की छाल मोटी कर देती है।

अमेरिका में परमाणु ऊर्जा आयोग की अल्बुकर्क स्थित प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों द्वारा सौर धब्बों के प्रभावों का गहन अध्ययन किया गया है। इन अध्ययनों में बीस वर्षों के दौरान अपराधों एवं दुर्घटनाओं सम्बंधी आंकड़े एकत्र किए गए। इन आंकड़ों के अध्ययन से पता लगता है कि सौर धब्बों की संख्या में वृद्धि के साथ अपराध एवं दुर्घटनाओं की संख्या में भी वृद्धि होती है। न्यूयॉर्क के डॉ. बेकट द्वारा सौर धब्बों के प्रभावों का अध्ययन मानसिक रोगों के सम्बंध में किया गया। उन्होंने पाया है कि जब सौर धब्बों की संख्या बढ़ती है तो मानसिक रोगियों की संख्या भी बढ़ती है।
सौर धब्बों की संख्या में वृद्धि के समय सूर्य की चमक अचानक काफी बढ़ जाती है। इसे सौर ज्वाला कहा जाता है। इस दौरान कुछ आवेशित कण सूर्य से निकलकर काफी तीव्र गति से चारों दिशाओं में फैलते हैं। ये कण पृथ्वी की ओज़ोन परत को पार कर भूसतह तक पहुंचते हैं तथा जीवों के मस्तिष्क तथा शरीर को प्रभावित करते हैं। कहते हैं कि इससे व्यक्तिगत तथा सामाजिक प्रवृत्तियों में परिवर्तन आता है। (स्रोत फीचर्स)