मामला इंडोनेशिया का है - 10 माह के एक शिशु के पेट से एक भ्रूण को निकाला गया जो उसके शरीर में परजीवी की तरह पल रहा था। यह सर्जरी इंडोनेशिया में वेस्ट नुसा तेन्गारा जनरल अस्पताल में पिछले महीने की गई।
इस शिशु को अस्पताल लाने का कारण यह था कि उसका पेट अचानक फूल गया था। माता-पिता को लग रहा था कि उसके पेट में गठान है। किंतु सीटी स्कैन व एक्सरे चित्रों में स्पष्ट दिखा कि शिशु के पेट में एक भ्रूणनुमा पिंड है जिसकी रीढ़ की हड्डी व भुजाएं बनने लगी हैं। शल्य चिकित्सकों ने ऑपरेशन करके 400 ग्राम का भ्रूण निकाल दिया। शिशु ठीक है और तेज़ी से स्वस्थ हो रहा है।

इस तरह के मामले (भ्रूण के अंदर भ्रूण) बहुत बिरले होते हैं। ऐसा पहला मामला सन 1800 में रिकॉर्ड किया गया था और उसके बाद से आज तक कुल 200 ऐसे मामले रिपोर्ट हुए हैं। होता यह है कि यदि जुड़वां बच्चे गर्भाशय में हों तो कभी-कभी एक भ्रूण दूसरे को अपने में लपेट लेता है। भ्रूण का विकास दरअसल एक कोशिका से शु डिग्री होता है जो विभाजित होकर धीरे-धीरे एक चपटी डिस्कनुमा बन जाती है। इसके बाद यह डिस्क फोल्ड होती है और शरीर का रूप धारण करने लगती है। फोल्डिंग के दौरान ही एक भ्रूण दूसरे को अपने अंदर समेट ले तो भ्रूण के अंदर भ्रूण की स्थिति निर्मित हो जाती है। अंदर धंसा हुआ भ्रूण विकसित नहीं हो पाता किंतु वह दूसरे (पोषक) भ्रूण से पोषण प्राप्त करता रहता है, अर्थात वह एक परजीवी होता है।

अविकसित परजीवी भ्रूण शिशु के शरीर में कहीं भी पाया जा सकता है - पेट में, फेफड़ों में, मस्तिष्क में। यह इस बात पर निर्भर है कि फोल्डिंग के दौरान वह कहां जाकर फंसा था। आम तौर पर व्यक्ति को जन्म के बाद इसका पता नहीं चलता क्योंकि इसके कोई विशेष लक्षण नहीं होते। हां, इतना ज़रूर है कि वह अंदर फंसा परजीवी भ्रूण जन्म के बाद भी बच्चे से पोषण प्राप्त करता रहता है। एक मामले में तो 47 साल की उम्र में जाकर भ्रूण के अंदर भ्रूण की स्थिति का पता चला था।
आजकल गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड वगैरह जांच सामान्य बात हो गई है, इसलिए ऐसी स्थिति का पता उसी समय चल जाता है। यह स्थिति 5 लाख जन्मों में एक बार देखा जाती है किंतु चिकित्सकों का कहना है कि अब इसके बढ़ने की संभावना है क्योंकि टेस्ट ट्यूब शिशु जैसी तकनीकों में जुड़वां बच्चे पैदा होने की संभावना ज़्यादा होती है। (स्रोत फीचर्स)