वैसे तो बीजरहित फल अनजाने नहीं हैं। बीजरहित केले, अंगूर वगैरह बाज़ार में खूब उपलब्ध हैं। मगर इनका विकास किसी सोची-समझी तकनीक से नहीं बल्कि संयोग से हुआ है। जैसे बीजरहित केले दो उप-प्रजातियों के बीच संयोग से हुए निषेचन का परिणाम हैं। अब जापान के तोकुशिमा विश्वविद्यालय के काइशी ओसाकाबे और उनके साथियों ने बीजरहित टमाटर का विकास जेनेटिक इंजीनियरिंग की विधि से करने में सफलता प्राप्त की है।
आम तौर पर फलों का विकास इस बात से जुड़ा होता है कि फूल का परागण व निषेचन होकर बीज बनने लगें। मगर ओसाकाबे के दल ने टमाटर के पौधे में क्रिस्पर तकनीक की मदद से एक ऐसा जीन जोड़ दिया कि उसके फलों का विकास बीजों के विकास से स्वतंत्र हो गया। आरोपित जीन विकसित होते फलों में ऑक्सिन नामक एक हारमोन का उत्पादन बढ़ा देता है जो बीज की अनुपस्थिति में भी फल के विकास को प्रेरित करता है। मतलब यह है कि इन फलों के बनने के लिए निषेचन की क्रिया ज़रूरी नहीं है।

वैसे अभी ये टमाटर बाज़ार में आएंगे या नहीं, इसका फैसला होना बाकी है। कई देशों में जेनेटिक इंजीनियरिंग से बने खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध है। इसके चलते इन बीजरहित टमाटर का बाज़ार में पहुंचना संदिग्ध है। वैसे कुछ लोगों का कहना है कि इस पौधे में वही जीन आरोपित किया गया है जो प्रकृति में पाया जाता है, इसलिए इसे मंज़ूरी देने में ज़्यादा दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
शोधकर्ताओं का कहना है कि पर्यावरण में परिवर्तन की वजह से कई फसलों के परागणकर्ता (जैसे मधुमक्खी) कम हो रहे हैं। बीजरहित टमाटर को परागण की ज़रूरत नहीं है। इसलिए परागणकर्ता के अभाव में भी ये अच्छी फसल दे सकते हैं। हां, एक बात ज़रूर है कि फिलहाल टमाटर के पौधे बीज से तैयार किए जाते हैं। इन बीजरहित टमाटर के पौधों की कलम लगेगी। बीज से पैदा करने की बजाय कलम से पैदा करना कहीं ज़्यादा महंगा पड़ता है।
एक बात यह भी है कि बीजों के कारण टमाटर के स्वाद में परिवर्तन आता है। पता नहीं लोगों को बीजरहित टमाटरों का स्वाद कितना भाएगा।
बीजरहित टमाटर के पौधों की एक विशेषता यह भी है कि इनकी पत्तियों का आकार सरल है जबकि सामान्य टमाटर की पत्तियां जटिल आकार की होती हैं। कारण यह है कि जो ऑक्सिन बीजों के बगैर फल बनने की गुंजाइश पैदा करता है वही पत्तियों के बनने को भी प्रभावित करता है। (स्रोत फीचर्स)