मल त्याग सजीवों का एक सामान्य गुण है और इसके बारे में बात करना गंदा माना जाता है। किंतु एक हालिया अध्ययन में स्तनधारी प्राणियों की इसी क्रिया पर शोध किया गया है। अध्ययन में पाया गया कि समस्त छोटे-बड़े स्तनधारी प्राणी (चूहे से लेकर व्हेल तक) मल त्याग में 12 सेकंड का समय लेते हैं।
सॉफ्ट मैटर नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित यह अनुसंधान जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी की मेकेनिकल इंजीनियर पैट्रिशिया यांग और उनके साथियों ने किया है। यांग व उनके साथियों ने स्थानीय चिड़ियाघर में हाथियों, पांडा और अफ्रीकी जंगली सुअर की मल त्याग करते समय की फिल्में उतारीं। हालांकि इन प्राणियों के वज़न 4 से लेकर 4000 किलोग्राम तक थे मगर सबको मत त्याग करने में 12 सेकंड का समय लगा।
मल त्याग में समानता सिर्फ समयावधि की नहीं है। शोधकर्ताओं ने देखा कि मल के टुकड़ों की लंबाई प्राणि के मलाशय के व्यास से पांच गुना थी। यांग व साथियों ने यह भी पाया कि मल विसर्जन के लिए प्रत्येक प्राणि एक सामान्य कम दबाव का उपयोग करता है और यह दबाव उसके डील डौल पर निर्भर नहीं करता। छोटे-बड़े सारे स्तनधारियों में मल विसर्जन के लिए लगाया गया प्रेशर एक समान होता है। इससे पहले यांग यह भी पता कर चुकी हैं कि मूत्र त्याग करने में भी सारे छोटे-बड़े प्राणियों को बराबर समय लगता है।

इन आंकड़ों के आधार पर यह सवाल स्वाभाविक था कि आखिर इतने अलग-अलग आकार के प्राणियों का मल त्याग का समय इतना एक समान क्यों और कैसे है। यांग का मत है कि सारा कमाल बड़ी आंत की दीवारों पर चिकने पदार्थ श्लेष्मा का है। यांग का कहना है कि बड़े प्राणियों के गुदा में श्लेष्मा की मात्रा ज़्यादा होती है। इसकी वजह से मल तेज़ी से आगे बढ़ता है।
कब्ज़ तब होती है जब गुदा में उपस्थित मल श्लेष्मा को सोख लेता है। यांग के मुताबिक यदि यह श्लेष्मा न हो और मनुष्य कोई प्रेशर न लगाए तो गुदा को खाली करने में पूरे 500 दिन लगेंगे। यदि आप ज़ोरदार प्रेशर लगाएंगे तो भी मल त्याग में 6 घंटे लग जाएंगे। उनका मत है कि ऐसा होने पर बेहतर होगा कि आप किसी डॉक्टर के पास जाएं।

सवाल यह भी है कि सारे स्तनधारियों में मल त्याग की अवधि में इतनी समानता किस वजह से है। यांग की परिकल्पना है कि आम तौर पर किसी प्राणि के मल की गंध उसकी उपस्थिति का पता देती है। यदि कोई प्राणि मल त्याग की क्रिया में एक ही जगह पर लंबे समय तक रुका तो शिकारियों को पता चल जाएगा। इसलिए मल त्याग की समयावधि को कम से कम करने की जुगाड़ चलती रहती है। हालांकि बड़े प्राणि ज़्यादा मल त्याग करते हैं किंतु उनका श्लेष्मा ज़्यादा गाढ़ा होता है जिसकी वजह से गुदा में मल तेज़ी से गति करता है।
यांग के दल ने 23 अलग-अलग प्रजातियों के मल त्याग की वीडियो फिल्मों पर भी गौर किया जो चिड़ियाघर में आने वाले सैलानियों ने खींचकर अपलोड की थीं। उन्होंने इन प्रजातियों के प्राणियों के मल के नमूनों का विश्लेषण भी किया। उन्होंने पाया कि मल का प्रकार प्राणि की खुराक पर निर्भर करता है।
उन्होंने यह भी पाया कि आम तौर पर प्राणि अपने वज़न के 8 प्रतिशत के बराबर भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं और शरीर के वज़न का 1 प्रतिशत मल के रूप में उत्सर्जित करते हैं।
इन सारे आंकड़ों के आधार पर वे मल त्याग की अवधि का सम्बंध पाचन नली में समस्याओं से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)