अमेरिका के खाद्य व औषधि प्रशासन ने एक कंपनी 23एंडमी के इस प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा दी है कि वह सीधे मरीज़ों से नमूना प्राप्त कर जांच की रिपोर्ट भी सीधे मरीज़ को ही दे सकेगी। और यह कोई छोटी-मोटी बीमारी के लक्षणों के आधार पर की जाने वाली जांच नहीं है। कंपनी व्यक्ति के डीएनए में यह पता करके बताएगी कि उसे पार्किंसन और अल्ज़ाइमर जैसे कोई 10 आनुवंशिक रोग होने की संभावना कितनी है।
खाद्य व औषधि प्रशासन की मंज़ूरी मिलने के बाद व्यक्ति को मात्र इतना करना होगा कि वह अपनी लार को एक फोहे पर पोंछकर वह फोहा डाक से कंपनी के पास भेज दे। 23एंडमी की प्रयोगशाला में जांच करके बता दिया जाएगा उपरोक्त आनुवंशिक रोगों के कारक जीन उसके जीनोम में हैं या नहीं। ऐसे कई सारे रोग पहचाने गए हैं जिनमें किसी जीन के परिवर्तित रूप की उपस्थिति ज़िम्मेदार हो सकती है।

इस मंज़ूरी को लेकर बहस शु डिग्री हो गई है। कई चिकित्सा विशेषज्ञों का मत है कि सीधे उपभोक्ता के लिए इस तरह की जांच कई समस्याओं को जन्म दे सकती है। जैसे एक मुद्दा तो यह है कि किसी जीन की उपस्थिति मात्र से उससे सम्बंधित रोग होना सुनिश्चित नहीं हो जाता। रोग वास्तव में होगा या नहीं, इसका फैसला व्यक्ति के स्वास्थ्य, जीवन शैली, अन्य रोगों की उपस्थिति जैसी कई बातों पर निर्भर करता है। ऐसे में यदि रिपोर्ट में किसी रोग से जुड़े जीन की उपस्थिति पाई गई तो व्यक्ति के लिए फैसला करना मुश्किल होगा कि अब क्या करे। यह अनावश्यक तनाव का सबब बनेगा।
दूसरा मुद्दा यह है कि इनमें से कई रोगों का कोई इलाज नहीं है। तब इनकी संभावना के बारे में पता लगने का क्या महत्व है? और यह भी तनाव का एक कारण बन सकता है। तीसरा मुद्दा यह है कि ऐसे जीन्स की उपस्थिति पता लगने के बाद कई और जांचें करवाने की ज़रूरत होगी जो शायद कहीं ज़्यादा महंगी होंगी।
विशेषज्ञों का मत है कि ऐसी जेनेटिक जानकारी किसी व्यक्ति को चिकित्सकीय परामर्श के साथ ही मिलनी चाहिए, अन्यथा वह न सिर्फ बेकार होती है बल्कि व्यक्ति के लिए तनाव का कारण बन सकती है।

इन दिक्कतों से बचने के लिए खाद्य व औषधि प्रशासन ने अपनी मंज़ूरी के साथ एक शर्त जोड़ दी है कि इन परीक्षणों से प्राप्त परिणामों का उपयोग किसी नैदानिक कार्य या उपचार के लिए नहीं किया जाना चाहिए। प्रशासन ने यह भी जोड़ा है कि ऐसे परीक्षणों में मिथ्या सकारात्मक और मिथ्या नकारात्मक परिणाम मिलने की गुंजाइश रहती है। मगर सोचने वाली बात यह है कि क्या आम लोग इन बारीकियों को समझते हैं। (स्रोत फीचर्स)