डॉ. अरविंद गुप्ते

छिपकलियां संसार के हर भाग में पाई जाती हैं। अधिकतर छिपकलियां ज़मीन पर रहती हैं। भारत में पाई जाने वाली कई प्रजातियों में सबसे परिचित छिपकलियां घरेलू छिपकली (जो घरों की दीवारों पर रहती है), झाड़ियों में रहने वाला गिरगिट और सुनसान इलाकों में रहने वाली गोह हैं। यहां हम एक अनोखी छिपकली के बारे में चर्चा करेंगे।
इन्डोनेशिया ऐसा देश है जिसमें सत्रह हज़ार द्वीप हैं। इनमें से केवल पांच द्वीपों पर एक दैत्याकार छिपकली पाई जाती है जो 8 से 10 फीट लम्बी और 70 किलोग्राम वज़नी है। दिखने में यह मगरमच्छ के समान है, किंतु वास्तव में यह हमारे यहां पाई जाने वाली गोह की बहुत करीबी है। पांच में से एक द्वीप कोमोडो के नाम पर इस छिपकली का नाम कोमोडो ड्रैगन रखा गया है। डै्रगन एक खूंखार मिथकीय जंतु का नाम है जिसके बारे में माना जाता है कि उसके मुंह से आग की लपटें निकलती हैं।

कोमोडो ड्रैगन विशुद्ध रूप से मांसाहारी जंतु है जो मरे हुए जानवरों का मांस खाता है, किंतु मौका लगने पर यह हिरन और भैंस जैसे जंतुओं का शिकार भी कर लेता है। शिकार को मारने का इसका तरीका यह है कि वह शिकार के गले पर काटता है। कोमोडो ड्रैगन के सिर में दो विष ग्रंथियां होती हैं जिनसे एक हल्का विष निकलता है। किंतु विष से अधिक घातक इसकी लार में रहने वाले कम से कम 57 प्रजातियों के बैक्टीरिया होते हैं जो शिकार को बीमार कर देते हैं। विष और बैक्टीरिया के मिले-जुले प्रभाव से शिकार थोड़े समय में पस्त हो जाता है और फिर उसका पीछा करता हुआ कोमोडो ड्रैगन उसे आराम से खा लेता है।
रोचक बात है कि जब कोमोडो ड्रैगन आपस में लड़ते हैं और एक-दूसरे को काटते हैं तब उन पर न तो इस विष का प्रभाव होता है न उन सारे बैक्टीरिया का। वैसे हर जंतु के शरीर में प्रोटीन्स होते हैं जो बैक्टीरिया का सामना करके संक्रमण को रोकते हैं। इन्हें एन्टीमाइक्रोबियल पेप्टाइड्स (AMPS) यानी सूक्ष्मजीव रोधी पेप्टाइड कहते हैं।

वैज्ञानिकों ने सोचा कि क्या कोमोडो ड्रैगन में कुछ विशेष प्रकार के AMPS होते हैं जिनके कारण अपनी ही प्रजाति के सदस्यों द्वारा काटे जाने का उस पर कोई असर नहीं होता?
आजकल ऐसे बैक्टीरिया तेज़ी से विकसित होते जा रहे हैं जिन पर एंटीबायोटिक दवाइयों का असर नहीं होता। इन्हें प्रतिरोधी बैक्टीरिया कहते हैं और इनके कारण संसार में प्रति वर्ष लगभग 7 हज़ार व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है क्योंकि इन सूक्ष्मजीवों पर शक्तिशाली एंटीबायोटिक का भी असर नहीं होता।
इस प्रश्न का हल खोजने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के जॉर्ज मेसन विश्वविद्यालय के बार्नी बिशप और मोनिक फान हुक ने कोमोडो ड्रैगन के रक्त का विश्लेषण किया। डॉ. बिशप ने एक चिड़ियाघर से कोमोडो ड्रैगन का रक्त प्राप्त किया और उसका ऋणावेशित हाइड्रोजेल कणों के साथ ऊष्मायन (इनक्युबेशन) किया। चूंकि पेप्टाइड धनावेशित होते हैं, वे हाइड्रोजेल कणों से बंध जाते हैं। इन पेप्टाइड्स का स्पेक्ट्रोफोटोमीटर से विश्लेषण करने पर पता चला कि कोमोडो ड्रैगन में 48 ऐसे AMPS है जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया था। डॉ. फान हुक ने इनमें से 8 AMPS का परीक्षण रोगजनक बैक्टीरिया की दो प्रजातियों Pseudomonas aeruginosa और Staphylococcus aureus के साथ किया। आठ में से सात ने दोनों प्रजातियों की वृद्धि को रोक दिया, आठवां AMPS केवल P. aeruginosa पर ही कारगर रहा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन दोनों प्रजातियों को बहुत खतरनाक घोषित किया है।
इस शोध कार्य का विवरण जर्नल ऑफ प्रोटीयोम रिसर्च में प्रकाशित किया गया है। इससे नए और अधिक कारगर एंटीबायोटिक बनाने की संभावनाएं खुल गई हैं। (स्रोत फीचर्स)